"मुक्तक": अवतरणों में अंतर
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▲ [[काव्य]] या [[काव्य|कविता]] का वह प्रकार है जिसमें प्रबन्धकीयता न हो। इसमें एक [[छन्द]] में कथित बात का दूसरे छन्द में कही गयी बात से कोई सम्बन्ध या तारतम्य होना आवश्यक नहीं है। [[कबीर]] एवं [[रहीम]] के दोहे; [[मीरा बाई|मीराबाई]] के पद्य आदि सब मुक्तक रचनाएं हैं। [[हिन्दी]] के [[रीति काल|रीतिकाल]] में अधिकांश मुक्तक काव्यों की रचना हुई।
मुक्तक शब्द का अर्थ है '''‘अपने आप में सम्पूर्ण’''' अथवा ‘'''अन्य निरपेक्ष वस्तु’''' होना. अत: मुक्तक काव्य की वह विधा है जिसमें कथा का कोई पूर्वापर संबंध नहीं होता। प्रत्येक छंद अपने आप में पूर्णत: स्वतंत्र और सम्पूर्ण अर्थ देने वाला होता है।
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आचार्य शुक्ल ने अन्यत्र मुक्तक के लिए भाषा की समास शक्ति और कल्पना की समाहार शक्ति को आवश्यक बताया था। [[गोविंद त्रिगुणायत]] ने उसी से प्रभावित होकर निम्न परिभाषा प्रस्तुत की-
: ''मेरी समझ में मुक्तक उस रचना को कहते हैं जिसमें प्रबन्धत्व का अभाव होते हुए भी कवि अपनी कल्पना की समाहार शक्ति और भाषा की समाज शक्ति के सहारे किसी एक रमणीय दृश्य, परिस्थिति, घटना या वस्तु का ऐसा चित्रात्मक एवं भावपूर्ण वर्णन प्रस्तुत करता है, जिससे पाठकों को प्रबंध जैसा आनंद आने लगता है।
वस्तुत: यह परिभाषा त्रुटिपूर्ण है। प्रबन्ध जैसा आनन्द कहना उचित नहीं है।
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