"अमीर ख़ुसरो": अवतरणों में अंतर
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== जीवन ==
इनके तीन पुत्रों में अबुलहसन (अमीर खुसरो) सबसे बड़े थे - ४ बरस की उम्र में वे दिल्ली लाए गए। ८ बरस की उम्र में वे प्रसिद्ध सूफ़ी हज़रत [[हज़रत निज़ामुद्दीन|निज़ामुद्दीन औलिया]] के शिष्य बने। १६-१७ साल की उम्र में वे अमीरों के घर शायरी पढ़ने लगे थे। एक बार दिल्ली के एक मुशायरे में बलबन के भतीजे [[सुल्तान मुहम्मद]] को ख़ुसरो की शायरी बहुत पसंद आई और वो इन्हें अपने साथ [[मुल्तान]] (आधुनिक पाकिस्तानी पंजाब) ले गया। सुल्तान मुहम्मद ख़ुद भी एक अच्छा शायर था - उसने खुसरो को एक अच्छा ओहदा दिया। ''मसनवी'' लिखवाई जिसमें २० हज़ार शेर थे - ध्यान रहे कि इसी समय मध्यतुर्की में शायद दुनिया के आजतक के सबसे श्रेष्ठ शायर मौलाना [[जलालुद्दीन रूमी|रूमी]] भी एक मसनवी लिख रहे थे या लिख चुके थे। ५ साल तक मुल्तान में उनका जिंदगी बहुत ऐशो आराम से गुज़री। इसी समय मंगोलों का एक ख़ेमा पंजाब पर आक्रमण कर रहा था। इनको क़ैद कर [[हेरात]] ले जाया गया - मंगोलों ने सुल्तान मुहम्मद का सर कलम कर दिया था। दो साल के बाद इनकी सैनिक आकांक्षा की कमी को देखकर और शायरी का अंदाज़ देखकर छोड़ दिया गया। फिर यो पटियाली पहुँचे और फिर दिल्ली आए। बलबन को सारा क़िस्सा सुनाया - बलबन भी बीमार पड़ गया और फिर मर गया। फिर [[कैकुबाद]] के दरबार में भी ये रहे - वो भी इनकी शायरी से बहुत प्रसन्न रहा और इन्हे ''मुलुकशुअरा'' (राष्ट्रकवि) घोषित किया। [[जलालुद्दीन ख़िलजी|जलालुद्दीन खिलजी]] इसी वक़्त दिल्ली पर आक्रमण कर सत्ता पर काबिज़ हुआ। उसने भी इनको स्थाई स्थान दिया। जब खिलजी के भतीजे और दामाद अलाउद्दीन ने ७० वर्षीय जलालुद्दीन का क़त्ल कर सत्ता हथियाई तो भी वो अमीर खुसरो को दरबार में रखा।
1.खलिकबारी(कोशग्रंथ)
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