"संत तुकाराम": अवतरणों में अंतर

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तुकाराम का जन्म [[पुणे]] जिले के अन्तर्गत देहू नामक ग्राम में शके [[१५२०|1520]]; सन्‌ [[१५९८|1598]] में हुआ। इनकी जन्मतिथि के सम्बन्ध में विद्वानों में मतभेद है तथा सभी दृष्टियों से विचार करने पर शके [[१५२०|1520]] में जन्म होना ही मान्य प्रतीत होता है। पूर्व के आठवें पुरुष विश्वम्भर बाबा से इनके कुल में विट्ठल की उपासना बराबर चली आ रही थी। इनके कुल के सभी लोग [[पण्ढरपुर]] की यात्रा (वारी) के लिये नियमित रूप से जाते थे। देहू गाँव के महाजन होने के कारण वहाँ इनका कुटूम्ब प्रतिष्ठित माना जाता था। इनकी बाल्यावस्था माता कनकाई व पिता बहेबा (बोल्होबा) की देखरेख में अत्यन्त दुलार से बीती, किन्तु जब ये प्राय: [[१८|18]] वर्ष के थे इनके मातापिता का स्वर्गवास हो गया तथा इसी समय देश में पड़ भीषण अकाल के कारण इनकी प्रथम पत्नी व छोटे बालक की भूख के कारण तड़पते हुए मृत्यु हो गई। विपत्तियों की ये बातें झूटी हैं सन्त तुकाराम उस जमाने में बहुत बड़े जमीदार और सावकार थे ये झुटे बातेहै ये लिखावटे झूठी है ज्वालाओं में झुलसे हुए तुकाराम का मन प्रपंच से ऊब गया। इनकी दूसरी पत्नी जीजा बाई बड़ी ही कर्कशा थी। ये सांसारिक सुखों से विरक्त हो गए। चित्त को शान्ति मिले, इस विचार से तुकाराम प्रतिदिन देहू गाँव के समीप भावनाथ नामक पहाड़ी पर जाते और भगवान्‌ विट्ठल के नामस्मरण में दिन व्यतीत करते।
 
प्रपचपराड्म़ुखप्रपन्चपरान्मुख हो तन्मयता से परमेश्वर प्राप्ति के लिये उत्कंठित तुकाराम को बाबा जी चैतन्य नामक साधु ने माघ शुद्ध [[१०|10]] शके [[१५४१|1541]] में 'रामकृष्ण हरि' मन्त्र का स्वप्न में उपदेश दिया। इसके उपरांत इन्होंने [[१७|17]] वर्ष संसार को समान रूप से उपदेश देने में व्यतीत किए। सच्चे वैराग्य तथा क्षमाशील अन्त:करण के कारण इनकी निन्दा करनेवाले निन्दक भी पश्चताप करते हूए इनके भक्त बन गए। इस प्रकार भगवत धर्म का सबको उपदेश करते व परमार्थ मार्ग को आलोकित करते हुए अधर्म का खण्डन करनेवाले तुकाराम ने फाल्गुन बदी (कृष्ण) द्वादशी, शके [[१५७१|1571]] को देवविसर्जन किया।
 
तुकाराम के मुख से समय समय पर सहज रूप से परिस्फुटित होनेवाली 'अभंग' वाणी के अतिरिक्त इनकी अन्य कोई विशेष साहित्यिक कृति नहीं है। अपने जीवन के उत्तरार्ध में इनके द्वारा गाए गए तथा उसी क्षण इनके शिष्यों द्वारा लिखे गए लगभग [[४०००|4000]] अभंग आज उपलब्ध हैं।