"वेदांग": अवतरणों में अंतर

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गृह्य् सूत्र
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वेदोक्त कर्मों का विस्तार के साथ संपूर्ण वर्णन करने का कार्य कल्पसूत्र ग्रंथ करते हैं। ये कल्पसूत्र दो प्रकार के होते हैं। एक 'श्रौतसूत्र' हैं और दूसरे 'स्मार्तसूत्र' हैं। वेदों में जिस यज्ञयाग आदि कर्मकांड का उपदेश आया है, उनमें से किस यज्ञ में किन मंत्रों का प्रयोग करना चाहिए, किसमें कौन सा अनुष्ठान किस रीति से करना चाहिए, इत्यादि कर्मकांड की सम्पूर्ण विधि इन कल्पसूत्र ग्रंथों में कही होती है। इसलिए कर्मकांड की पद्धति जानने के लिए इन कल्पसूत्र ग्रंथों की विशेष आवश्यकता होती है। यज्ञ यागादि का ज्ञान श्रौतसूत्र से होता है और षोडश संस्कारों का ज्ञान स्मार्तसूत्र से मिलता है।
 
वैदिक कर्मकांड में यज्ञों का बड़ा भारी विस्तार मिलता है। और हर एक यज्ञ की विधि श्रौतसूत्र से ही देखनी होती है। इसलिए श्रौतसूत्र अनेक हुए हैं। इसी प्रकार स्मार्तसूक्त भीगृह्यसूत्र सोलह संस्कारों का वर्णन करते हैं, इसलिए ये भी पर्याप्त विस्तृत हैं। श्रौतसूत्रों में यज्ञयाग के सब नियम मिलेंगे और स्मार्तसूत्रों में अर्थात्‌ गृह्यसूत्रों में उपनयन, जातकर्म, विवाह, गर्भाधान, आदि षोडश संस्कारों का विधि विधान रहेगा।
 
===व्याकरण===