"'से' का नियम": अवतरणों में अंतर

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===मौद्रिक अर्थव्यवस्था में ‘से’ का नियम===
परम्परावादी अर्थशास्त्री ‘से’ के नियम को मौद्रिक अर्थव्यवस्था में भी लागू करते है। उनके अनुसार मुद्रा केवल विनिमय के माध्यम का काम करती है। जब एक उत्पादक अपने उत्पादन को बेचकर मुद्रा के रुप में आय प्राप्त करेगा, वह उस मुद्रा को दूसरी वस्तुएं तथा सेवाएं खरीदने के लिये खर्च कर देगा। इस प्रकार मांग का निर्माण होगा तथा वह कुल पूर्ति के बराबर हो जायेगी।
 
मौद्रिक अर्थव्यवस्था में ‘से’ के नियम को एक उदाहरण से समझा जा सकता है। मान लीजिए कि यदि एक वर्ष में किसी देश में 100 करोड़ रुपये का उत्पादन होता है तो कुल पूर्ति में 100 करोड़ रुपये की वृद्धि होगी। इसके कारण उत्पादन के साधनों की आय (मजदूरी + लगान + ब्याज + लाभ) में 100 करोड़ रुपये की वृद्धि होगी। वे अपनी 100 करोड़ की आय को वस्तुओं तथा सेवाओं की कुल पूर्ति को खरीदने में खर्च कर देगें। इस प्रकार कुल मांग में 100 करोड़ रुपये की वृद्धि होगी। इस प्रकार कुल पूर्ति अपनी मांग का स्वयं निर्माण कर लेगी। कुल मांग के कारण राष्ट्रीय फिर से उत्पादकों के पास पहुंच जायेगी तथा वे दूसरे वर्ष 100 करोड़ रुपये का उत्पादन कर सकेंगे। इस प्रकार यह चक्रीय प्रवाह चलता रहेगा।
 
== आलोचनाएं==
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3. ‘से’ के बाजार नियम की यह धारणा भी गलत है कि अर्थव्यवस्था में स्वतः समन्वय आ जाता है।
 
4. बचत और निवेश में सन्तुलन की धारणा भी गलत है। केन्ज के अनुसार बचत और निवेश में समानता ब्याज की दर में परिवर्तन होने के कारण नही आती बल्कि आय के स्तर में परिवर्तन होने के कारण आती है।
 
5. इस नियम की यह भी आलोचना की जाती है कि मुद्रा केवल विनियम का माध्यम नही है बल्कि धन संचय का साधन भी है।