"वेदव्यास": अवतरणों में अंतर

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== वेदव्यास के जन्म की कथा ==
 
16 साल की उम्र में ही उन्होंने आश्रमों में होने वाले धार्मिक कार्यो में हिस्सा लेना शुरू कर दिया था वेदव्यास जी को अपने बाल्यकाल में ही सभी शास्त्रों वेद पुराण का ज्ञान हो गया था और उस समय उनके ज्ञान के आगे कोई नहीं टिक पाता था| पौराणिक कथाओं के अनुसार वेद व्यास उस समय काल के सबसे बड़े वेदज्ञ थे इसलिए आगे चलकर ये वेदव्यास कहलाये |
पौराणिक कथाओं के अनुसार प्राचीन काल में सुधन्वा नाम के एक राजा थे। वे एक दिन आखेट के लिये वन गये। उनके जाने के बाद ही उनकी पत्नी रजस्वला हो गई। उसने इस समाचार को अपनी शिकारी पक्षी के माध्यम से राजा के पास भिजवाया। समाचार पाकर महाराज सुधन्वा ने एक दोने में अपना वीर्य निकाल कर पक्षी को दे दिया। पक्षी उस दोने को राजा की पत्नी के पास पहुँचाने आकाश में उड़ चला। मार्ग में उस शिकारी पक्षी को एक दूसरी शिकारी पक्षी मिल गया। दोनों पक्षियों में युद्ध होने लगा। युद्ध के दौरान वह दोना पक्षी के पंजे से छूट कर यमुना में जा गिरा। [[यमुना नदी|यमुना]] में [[ब्रह्मा]] के शाप से मछली बनी एक अप्सरा रहती थी। मछली रूपी अप्सरा दोने में बहते हुये वीर्य को निगल गई तथा उसके प्रभाव से वह गर्भवती हो गई। गर्भ पूर्ण होने पर एक निषाद ने उस मछली को अपने जाल में फँसा लिया। निषाद ने जब मछली को चीरा तो उसके पेट से एक बालक तथा एक बालिका निकली। निषाद उन शिशुओं को लेकर महाराज सुधन्वा के पास गया। महाराज सुधन्वा के पुत्र न होने के कारण उन्होंने बालक को अपने पास रख लिया जिसका नाम मत्स्यराज हुआ। बालिका निषाद के पास ही रह गई और उसका नाम मत्स्यगंधा रखा गया क्योंकि उसके अंगों से मछली की गंध निकलती थी। उस कन्या को सत्यवती के नाम से भी जाना जाता है। बड़ी होने पर वह नाव खेने का कार्य करने लगी एक बार पराशर मुनि को उसकी नाव पर बैठ कर यमुना पार करना पड़ा। [[पराशर ऋषि|पराशर]] मुनि [[सत्यवती]] रूप-सौन्दर्य पर आसक्त हो गये और बोले, "देवि! मैं तुम्हारे साथ सहवास करना चाहता हूँ।" सत्यवती ने कहा, "मुनिवर! आप ब्रह्मज्ञानी हैं और मैं निषाद कन्या। हमारा सहवास सम्भव नहीं है।" तब पराशर मुनि बोले, "बालिके! तुम चिन्ता मत करो। प्रसूति होने पर भी तुम कुमारी ही रहोगी।" इतना कह कर उन्होंने अपने योगबल से चारों ओर घने कुहरे का जाल रच दिया और सत्यवती के साथ भोग किया। तत्पश्चात् उसे आशीर्वाद देते हुये कहा, तुम्हारे शरीर से जो मछली की गंध निकलती है वह सुगन्ध में परिवर्तित हो जायेगी।"
[[File:Vyasa with his mother.jpg|thumb|महर्षि वेदव्यास अपनी माता के साथ]]
समयअपनी आने परमाँ [[सत्यवती]] गर्भका सेआशीर्वाद वेदलेकर वेदांगोंवे मेंद्वैपायन पारंगतद्वीप एकपर पुत्र हुआ। जन्म होते ही वह बालक बड़ा हो गया और अपनी माता से बोला, "माता! तू जब कभी भी विपत्ति में मुझे स्मरण करेगी, मैं उपस्थित हो जाउँगा।" इतना कह कर वे तपस्यातप करने के लिये द्वैपायन द्वीप चले गये।गए द्वैपायन| द्वीप में तपस्या करने तथा उनके शरीर का रंग काला होने के कारण उन्हे कृष्ण द्वैपायन कहा जाने लगा। आगे चल कर वेदों का विभाजन करने के कारण वे वेदव्यास के नाम से विख्यात हुये।<ref>{{Cite web|url=http://jaimaamansadevi.com/jmd/8-%E0%A4%AA%E0%A5%8C%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A3%E0%A4%BF%E0%A4%95-%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0-%E0%A4%9C%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A4%95%E0%A5%8B-%E0%A4%85%E0%A4%AE%E0%A5%83%E0%A4%A4-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%A8-%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%BE-%E0%A4%B9%E0%A5%88|title=8 पौराणिक पात्र, जिनको अमृत का वरदान मिला है :: ॐ Jai Mata Di ॐ|website=jaimaamansadevi.com|access-date=2020-01-08}}{{Dead link|date=जून 2020 |bot=InternetArchiveBot }}</ref>
 
== वेद व्यास के विद्वान शिष्य santosh Prasad sati ==