"वेदव्यास": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
Name of satyavati टैग: Reverted मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन |
रोहित साव27 (वार्ता | योगदान) 2409:4053:892:d619::11d3:e8b0 के सम्पादनों को हटाया (रोहित साव27 के पिछले संस्करण को पुनः स्थापित किया।) टैग: Manual revert Disambiguation links |
||
पंक्ति 1:
{{ज्ञानसन्दूक महाभारत के पात्र|width1=|मुख्य शस्त्र=|देवनागरी=|संदर्भ ग्रंथ=[[महाभारत]], [[पुराण]] आदि|Caption=ऋषि वेदव्यास ([[महाभारत|जयसंहिता]])|उत्त्पति स्थल=यमुना तट [[हस्तिनापुर]]|व्यवसाय=[[वैदिक ऋषि]]|राजवंश=|नाम=कृष्णद्वैपायन वेदव्यास|माता और पिता=[[सत्यवती]] (मत्स्यगंधा) और ऋषि [[पराशर ऋषि|पराशर]]|भाई-बहन=[[भीष्म]],[[चित्रांगद]] और [[विचित्रवीर्य]] सौतेले भाई|जीवनसाथी=|अन्य नाम=कृष्णद्वैपायन, बादरायणि, पाराशर्य|संतान=[[शुकदेव]]|Image=Vyasa.jpg|काव्य कार्य=[[महाभारत]], [[श्रीमद्भगवद्गीता]], अष्टादश [[पुराण]]}}
'''महर्षि कृष्णद्वैपायन वेदव्यास''' [[महाभारत]] ग्रंथ के रचयिता थे। भगवान [[विष्णु]] के अवतार माने जाते हैं। पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु ने द्वापर युग में दो अवतार लिए पहला महर्षि कृष्णद्वैपायन वेदव्यास महर्षि [[पराशर]] और [[सत्यवती]] (मत्स्यगंधा) के पुत्र
इन दोनों गोत्रों से भिन्न होना चाहिये|
प्राचीन ग्रंथों के अनुसार महर्षि वेदव्यास स्वयं ईश्वर के स्वरूप थे। निम्नोक्त श्लोकों से इसकी पुष्टि होती है।
Line 20 ⟶ 21:
== वेदव्यास के जन्म की कथा ==
पौराणिक कथाओं के अनुसार प्राचीन काल में सुधन्वा नाम के एक राजा थे। वे एक दिन आखेट के लिये वन गये। उनके जाने के बाद ही उनकी पत्नी रजस्वला हो गई। उसने इस समाचार को अपनी शिकारी पक्षी के माध्यम से राजा के पास भिजवाया। समाचार पाकर महाराज सुधन्वा ने एक दोने में अपना वीर्य निकाल कर पक्षी को दे दिया। पक्षी उस दोने को राजा की पत्नी के पास पहुँचाने आकाश में उड़ चला। मार्ग में उस शिकारी पक्षी को एक दूसरी शिकारी पक्षी मिल गया। दोनों पक्षियों में युद्ध होने लगा। युद्ध के दौरान वह दोना पक्षी के पंजे से छूट कर यमुना में जा गिरा। [[यमुना नदी|यमुना]] में [[ब्रह्मा]] के शाप से मछली बनी एक अप्सरा रहती थी। मछली रूपी अप्सरा दोने में बहते हुये वीर्य को निगल गई तथा उसके प्रभाव से वह गर्भवती हो गई। गर्भ पूर्ण होने पर एक निषाद ने उस मछली को अपने जाल में फँसा लिया। निषाद ने जब मछली को चीरा तो उसके पेट से एक बालक तथा एक बालिका निकली। निषाद उन शिशुओं को लेकर महाराज सुधन्वा के पास गया। महाराज सुधन्वा के पुत्र न होने के कारण उन्होंने बालक को अपने पास रख लिया जिसका नाम मत्स्यराज हुआ। बालिका निषाद के पास ही रह गई और उसका नाम मत्स्यगंधा रखा गया क्योंकि उसके अंगों से मछली की गंध निकलती थी। उस कन्या को सत्यवती के नाम से भी जाना जाता है। बड़ी होने पर वह नाव खेने का कार्य करने लगी एक बार पराशर मुनि को उसकी नाव पर बैठ कर यमुना पार करना पड़ा। [[पराशर ऋषि|पराशर]] मुनि [[सत्यवती]] रूप-सौन्दर्य पर आसक्त हो गये और बोले, "देवि! मैं तुम्हारे साथ सहवास करना चाहता हूँ।" सत्यवती ने कहा, "मुनिवर! आप ब्रह्मज्ञानी हैं और मैं निषाद कन्या। हमारा सहवास सम्भव नहीं है।" तब पराशर मुनि बोले, "बालिके! तुम चिन्ता मत करो। प्रसूति होने पर भी तुम कुमारी ही रहोगी।" इतना कह कर उन्होंने अपने योगबल से चारों ओर घने कुहरे का जाल रच दिया और सत्यवती के साथ भोग किया। तत्पश्चात् उसे आशीर्वाद देते हुये कहा, तुम्हारे शरीर से जो मछली की गंध निकलती है वह सुगन्ध में परिवर्तित हो जायेगी।"
[[File:Vyasa with his mother.jpg|thumb|महर्षि वेदव्यास अपनी माता के साथ]]
== वेद व्यास के विद्वान शिष्य ==
|