"प्रतीत्यसमुत्पाद": अवतरणों में अंतर
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'''प्रतीत्यसमुत्पाद''' का सिद्धांत कहता है कि कोई भी घटना केवल दूसरी घटनाओं के कारण ही एक जटिल कारण-परिणाम के जाल में विद्यमान होती है। प्राणियों के लिये इसका अर्थ है - कर्म और विपाक (कर्म के परिणाम) के अनुसार अनंत संसार का चक्र। क्योंकि सब कुछ अनित्य और अनात्म (
== बाहरी कड़ियाँ ==
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