"वाल्मीकि": अवतरणों में अंतर

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उसके बाद उन्होंने प्रसिद्ध महाकाव्य "रामायण" (जिसे "वाल्मीकि रामायण" के नाम से भी जाना जाता है) की रचना की और "आदिकवि वाल्मीकि" के नाम से अमर हो गये। अपने महाकाव्य "रामायण" में उन्होंने अनेक घटनाओं के समय [[सूर्य]], [[चन्द्रमा|चंद्र]] तथा अन्य [[नक्षत्र]] की स्थितियों का वर्णन किया है। इससे ज्ञात होता है कि वे [[ज्योतिष]] विद्या एवं [[ब्रह्माण्ड|खगोल]] विद्या के भी प्रकाण्ड ज्ञानी थे। महर्षि वाल्मीकि जी जी ने पवित्र ग्रंथ रामायण की रचना की परंतु वे आदिराम से अनभिज रहे।<ref>{{Cite web|url=https://news.jagatgururampalji.org/valmiki-jayanti-in-hindi/|title=Valmiki Jayanti 2021: महर्षि वाल्मीकि जयंती पर जानें आदिराम और राम में अंतर|date=2021-10-18|website=SA News Channel|language=en-US|access-date=2021-10-18}}</ref><blockquote>राम राम सब जगत बखाने | आदि राम कोइ बिरला जाने ||</blockquote>अपने वनवास काल के दौरान भगवान"श्रीराम" वाल्मीकि के आश्रम में भी गये थे। भगवान वाल्मीकि को "श्रीराम" के जीवन में घटित प्रत्येक घटना का पूर्ण ज्ञान था। सतयुग, त्रेता और द्वापर तीनों कालों में वाल्मीकि का उल्लेख मिलता है इसलिए भगवान वाल्मीकि को सृष्टिकर्ता भी कहते है, रामचरितमानस के अनुसार जब श्रीराम वाल्मीकि आश्रम आए थे तो आदिकवि वाल्मीकि के चरणों में दण्डवत प्रणाम करने के लिए वे जमीन पर डंडे की भांति लेट गए थे और उनके मुख से निकला था "तुम त्रिकालदर्शी मुनिनाथा, विस्व बदर जिमि तुमरे हाथा।" अर्थात आप तीनों लोकों को जानने वाले स्वयं प्रभु हैं। ये संसार आपके हाथ में एक बैर के समान प्रतीत होता है।<ref><nowiki>{{cite book |title=सहरिया |date=2009 |publisher=वन्या [for] आदिम जाति कल्याण विभाग</nowiki></ref>
 
महाभारत काल में भी वाल्मीकि का वर्णन मिलता है।<ref>{{Cite web|url=https://hindi.webdunia.com/mahabharat/ram-katha-in-mahabharata-121041300061_1.html|title=Ramayan in Mahabharata {{!}} महाभारत में रामायण की रामकथा|last=जोशी|first=अनिरुद्ध|website=hindi.webdunia.com|language=hi|access-date=2021-10-18}}</ref> जब पांडव कौरवों से युद्ध जीत जाते हैं तो [[द्रौपदी]] यज्ञ रखती है, जिसके सफल होने के लिये शंख का बजना जरूरी था परन्तु कृष्ण सहित सभी द्वारा प्रयास करने पर भी पर यज्ञ सफल नहीं होता तो [[कृष्ण]] के कहने पर सभी वाल्मीकि से प्रार्थना करते हैं। जब वाल्मीकि वहां प्रकट होते हैं तो शंख खुद बज उठता है और द्रौपदी का यज्ञ सम्पूर्ण हो जाता है। इस घटना को [[कबीर]] ने भी स्पष्ट किया है "सुपच रूप धार सतगुरु आए। पांडवो के यज्ञ में शंख बजाए।"{{cn}}
 
==सन्दर्भ==