"नवधा भक्ति": अवतरणों में अंतर

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[[File:Shabari's Hospitality.jpg|thumb|राम और लक्ष्मण के प्रति शबरी के आतिथ्य]]
प्राचीन शास्त्रों में भक्ति के 9 प्रकार बताए गए हैं जिसे '''नवधा भक्ति''' कहते हैं -
श्रीमद्भागत महापुराण के सातवें स्कन्द में हिरण्यकश्यपु अपने पुत्र से पूछता है कि गुरुकुल में तुमने क्या सीखा ?
 
: ''श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम्। ''
प्रह्लादानूच्यतां  तात स्वधीतं किंचिदुत्तमम्।
: ''अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥''
 
कालेनैतावतायुष्मन् यद्शिक्षद् गुरोर् भवान।।
 
पिता के उक्त प्रश्न पर प्रह्लाद जी भक्ति के नवधा (नौ ) प्रकारों का वर्णन करते हैं, जिन्हें '''नवधा भक्ति''' कहते हैं - -
 
''श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम्। ''
: ''अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥''
:(श्रीमद्भागवत - ७. ५. २२, २३ )
 
श्रवण (परीक्षित), कीर्तन (शुकदेव), स्मरण (प्रह्लाद), पादसेवन (लक्ष्मी), अर्चन (पृथुराजा), वंदन (अक्रूर), दास्य (हनुमान), सख्य (अर्जुन) और आत्मनिवेदन (बलि राजा) - इन्हें नवधा भक्ति कहते हैं।