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अनंतपंडितश्रीरुद्राक्षदेवपंडितअनंत के अनुसार/{{आधार}}
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'''पुरुषार्थ''' से तात्पर्य मानव के लक्ष्य या उद्देश्य से है ('पुरुषैर्थ्यते इति पुरुषार्थः')। पुरुषार्थ = पुरुष+अर्थ =पुरुष का तात्पर्य विवेक संपन्न मनुष्य से है अर्थात विवेक शील मनुष्यों के लक्ष्यों की प्राप्ति ही पुरुषार्थ है। प्रायः मनुष्य के लिये [[वेद|वेदों]] में चार '''पुरुषार्थों''' का नाम लिया गया है - [[धर्म]], [[अर्थ]], [[काम]] और [[मोक्ष]]। इसलिए इन्हें 'पुरुषार्थचतुष्टय' भी कहते हैं। महर्षि [[मनु]] पुरुषार्थ चतुष्टय के प्रतिपादक हैं।