"धर्मचक्र": अवतरणों में अंतर

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आनंदपंडितश्रीरुद्राक्षदेवपंडितअनंत के अनुसार/'''धर्मचक्र''' ([[पालि]] में : 'धम्मचक्क' ; शाब्दिक अर्थ : 'धर्म का पहिया') [[भारतीय संस्कृति]] में बहुतायत में प्रयोग किया जाने वाला एक प्रतीक है जो चक्र या पहिए के रूप में होता है। यह [[भारतीय धर्म|सनातन धर्म]] ([[हिन्दू]] पन्थ, [[बौद्ध]] पन्थ, [[जैन]] पन्थ, [[सिख]] पन्थ) में मान्य आठ मंगलों ([[अष्टमंगल]]) में से एक है। यह प्रगति और जीवन का प्रतीक भी है।
 
बौद्ध पन्थ में धर्मचक्र का विशेष महत्व है। [[गौतम बुद्ध|बुद्ध]] ने [[सारनाथ]] में जो प्रथम धर्मोपदेश दिया था उसे ''[[धम्मचक्कप्पवत्तनसुत्त|धर्मचक्र प्रवर्तन]]'' भी कहा जाता है। आरम्भिक काल से ही प्रायः सभी बौद्ध मन्दिरों, मूर्तियों और शिलालेखों पर धर्मचक्र का प्रयोग अलंकरण (सजावट) के रूप में किया गया मिलता है। वर्तमान में धर्मचक्र बौद्धधर्म का प्रमुख प्रतीक है।