"हिंदी आलोचना": अवतरणों में अंतर

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आधुनिक गद्य साहित्य के साथ ही हिन्दी आलोचना का उदय भी [[भारतेन्दु युग]] में हुआ | [[विश्वनाथ त्रिपाठी]] ने संकेत किया है कि “हिंदी आलोचना पाश्चात्य की नकल पर नहीं, बल्कि अपने साहित्य को समझने-बूझने और उसकी उपादेयता पर विचार करने की आवश्यता के कारण जन्मी और विकसित हुई।” हिन्दी आलोचना भी संस्कृत काव्यशास्त्र की आधार-भूमि से जुड़कर भी स्वाभाविक रूप से रीतिवाद, [[साम्राज्यवाद]], [[सामंतवाद|सामन्तवाद]], [[कलावाद]] और [[अभिजात्यवाद]] विरोधी और स्वच्छन्दताकामी रही है। रचना और आलोचना की समानधर्मिता को डॉ [[रामविलास शर्मा|राम विलास शर्मा]] के इस मन्तव्य से समझा जा सकता है कि जो काम [[सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'|निराला]] ने काव्य में और [[प्रेमचंद|प्रेमचन्द ने]] उपन्यासों के माध्यम से किया वही काम [[रामचन्द्र शुक्ल|आचार्य रामचन्द्र शुक्ल]] ने आलोचना के माध्यम से किया।
 
== प्रमुख आलोचना ग्रंथ ==
1. अलंकार मंजूषा 1916 '''लाला भगवानदीन
 
2. काव्य कल्पद्रुम 1926 '''कन्हैया लाल पोद्दार
 
3. रस कलश 1931 '''अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध
 
4. साहित्य पारिजात 1940 '''शुकदेव बिहारी मिश्र''' (मिश्रबंधुओं — श्याम बिहारी मिश्र, गणेश बिहारी मिश्र, शुकदेव बिहारी मिश्र)
 
5. काव्यदर्पण 1947 '''रामधहिन मिश्र
 
6. रसज्ञ रंजन 1920 '''महावीर प्रसाद द्विवेदी
 
7. हिंदी नवरत्न 1910 '''मिश्रबंधु
 
8. देव और बिहारी '''कृष्ण बिहारी मिश्र
 
9. बिहारी और देव '''लाला भगवानदीन
 
=== प्रमुख आलोचक ===