"अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध'": अवतरणों में अंतर
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[https://educationgyani.com/ayodhya-singh-upadhyay/ हरिऔधजी] पहले ब्रजभाषा में कविता किया करते थे, 'रसकलश' इसका सुन्दर उदाहरण है। महावीरप्रसाद द्विवेदी के प्रभाव से ये खड़ीबोली के क्षेत्र में आये और खड़ीबोली काव्य को नया रूप प्रदान किया। भाषा, भाव, छन्द और अभिव्यंजना की घिसी पिटी परम्पराओं को तोड़कर इन्होंने नयी मान्यताएँ स्थापित ही नहीं कीं, अपितु उन्हें मूर्त रूप भी प्रदान किया। इनकी बहुमुखी प्रतिभा और साहस के कारण ही काव्य के भाव-पक्ष और कला-पक्ष को नवीन आयाम प्राप्त हुए।
भाषा की जैसी विविधता हरिऔधजी के काव्य में है, वैसी विविधता महाकवि निराला के अतिरिक्त अन्य किसी के काव्य में नहीं है। इन्होंने कोमलकान्त पदावलीयुक्त ब्रजभाषा – 'रसकलश' में, संस्कृतनिष्ठ खड़ीबोली- 'प्रियप्रवास' में, मुहावरेयुक्त बोलचाल की खड़ीबोली- 'चोखे चौपदे' और 'चुभते चौपदे' में पूर्ण अधिकार और सफलता के साथ प्रयुक्त की है। आचार्य
रामचन्द्र शुक्ल ने इसीलिए इन्हें 'द्विकलात्मक कला' में सिद्धहस्त कहा है। इन्होंने प्रबन्ध और मुक्तक शैलियों में सफल काव्य रचनाएँ की हैं। इतिवृत्तात्मक, मुहावरेदार, संस्कृत काव्य, चमत्कारपूर्ण सरल हिन्दी शैलियों का अभिव्यंजना-शिल्प की दृष्टि से सफल प्रयोग भी किया है।
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