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[[चित्र :Vijayanagara-empire-map.svg |thumb|240px|right| विजयनगर साम्राज्य - [[१५|15]]वीं सदी में]]
 
'''विजयनगर साम्राज्य''' ({{lang-sa|विजयनगरसाम्राज्यम्}} ) (जिसे '''कर्णट साम्राज्य'''{{sfn|Stein|1989|p=1}} और पुर्तगालियों द्वारा बिसनेगर साम्राज्य भी कहा जाता था) भारत के [[दक्षिण भारत|डेक्कन(दक्खन)]] क्षेत्र में स्थित था। यह 1336 में संगमा राजवंश के दो भाई [[हरिहर राय प्रथम|हरिहर राय]] और [[बुक्क राय प्रथम|बुक्का राय]],<ref name="Book of Duarte Barbosa">Longworth, James Mansel (1921), p.204, ''The Book of Duarte Barbose'', Asian Educational Services, New Delhi, {{ISBN|81-206-0451-2}}</ref><ref name="The madras journal">J C Morris (1882), p.261, ''The Madras Journal Of Literature and Science'', Madras Literary Society, Madras, Graves Cookson & Co.</ref><ref name="sen2">{{Cite book |last=Sen |first=Sailendra |title=A Textbook of Medieval Indian History |publisher=Primus Books |year=2013 |isbn=978-93-80607-34-4 |pages=103–106}}</ref> द्वारा स्थापित किया गया था, जो कुरूबा[[गोप|गोपाल]] समुदाय के सदस्य थे और वे [[धनगरयदुवंश|धनगरयादव वंश]] से थे। <ref>{{cite book|first=Ramchandra |last=Dhere |title=Rise of a Folk God: Vitthal of Pandharpur South Asia Research |url=https://books.google.com/books?id=jUeeAgAAQBAJ |year=2011 |publisher=Oxford University Press, 2011 |isbn=9780199777648 |pages=243}}</ref><ref name="kuruba"/><ref name="pasture">{{Cite book|last=Lewis|first=Rice B|url=https://archive.org/details/mysoregazetteerc01rice/page/n6/mode/2up|title=Mysore: A gazetteer compiled for government, vol 1|publisher=Archibald Constable & Co|year=1897|isbn=|location=Mysore|pages=345}}</ref><ref name="cowherd">{{Cite book|last=Sastri|first=Nilakanta|url=https://archive.org/details/K.A.NilakantaSastriBooks|title=K. A. Nilakanta Sastri Books: Further Source of Vijayanagara History Volume 1|publisher=|year=1935|isbn=|location=|pages=23}}</ref>
 
'''विजयनगर साम्राज्य''' (1336-1646) मध्यकालीन का एक [[साम्राज्य]] था। इसके राजाओं ने 310 वर्ष तक राज किया। इसका वास्तविक नाम '''कर्नाटक साम्राज्य''' था। इसकी स्थापना [[हरिहर राय प्रथम|हरिहर]] और [[बुक्क राय प्रथम|बुक्का राय]] नामक दो भाइयों ने की थी। पुर्तगाली इस साम्राज्य को '''बिसनागा राज्य''' के नाम से जानते थे।
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[[चित्र:Elephant's stable or Gajashaale.JPG|right|300px|right|thumb|युद्ध में उपयोग के लिए पाली गयी हाथियों की '''गजशाला''']]
[https://historyguruji.com/विजय-नगर-साम्राज्य विजयनगर राज्य]{{Dead link|date=सितंबर 2021 |bot=InternetArchiveBot }} में विभिन्न तरह के मन्त्रालय बनाए गये जिसमें शासन मन्त्रालय भी था जिसका इस्तेमाल तब होता था जब राजा सही फैसला न ले पाए। विजयनगर में प्रतापी एवं शक्तिशाली नरेशों की कमी न थी। युद्धप्रिय होने के अतिरिक्त, सभी हिन्दू संस्कृति के रक्षक थे। स्वयं कवि तथा विद्वानों के आश्रयदाता थे। कृष्ण देव राय संगम नामक चरवाहे के पुत्र थे उनको उनके राज्य से निकाल दिया गया था । अतएव उन्होने '''संगम''' सम्राट् के नाम से शासन किया। विजयनगर राज्य के संस्थापक शंकर प्रथभ ने थोड़े समय के पश्चात् अपने वरिष्ठ तथा योग्य बन्धु महादेव राय को राज्य का उत्तराधिकारी घोषित किया। संगम वंश के तीसरे प्रतापी नरेश संगम महावीर द्वितीय ने विजयनगर राज्य को दक्षिण का एक विस्तृत, शक्तिशाली तथा सुदृढ़ साम्राज्य बना दिया। हरिहर द्वितीय के समय में [[सायण]] तथा [[मध्वाचार्य|माधव]] ने [[वेद]] तथा धर्मशास्त्र पर निबन्धरचना की। उनके वंशजों में द्वितीय देवराय का नाम उल्लेखनीय है जिसने अपने राज्याभिषेक के पश्चात् संगम राज्य को उन्नति का चरम सीमा पर पहुँचा दिया। मुग़ल रियासतों से युद्ध करते हुए, देबराय प्रजापालन में संलग्न रहा। राज्य की सुरक्षा के निमित्त तुर्की घुड़सवार नियुक्त कर सेना की वृद्धि की। उसके समय में अनेक नवीन मन्दिर तथा भवन बने।
 
दूसरा राजवंश '''सालुव''' नाम से प्रसिद्ध था। इस वंश के संस्थापक सालुब नरसिंह ने [[१४८५|1485]] से [[१४९०|1490]] ई. तक शासन किया। उसने शक्ति क्षीण हो जाने पर अपने मंत्री नरस नायक को विजयनगर का संरक्षक बनाया। वही तुलुव वंश का प्रथम शासक माना गया है। उसने [[१४९०|1490]] से [[१५०३|1503]] ई. तक शासन किया और दक्षिण में कावेरी के सुदूर भाग पर भी विजयदुन्दुभी बजाई। तुलुब वंश में हंगामा तब हुआ जब कृष्णदेव राय का नाम राजा बनने में सबसे आगे था। उन्होंने [[१५०९|1509]] से [[१५३९|1539]] ई. तक शासन किया और [https://historyguruji.com/विजय-नगर-साम्राज्य विजयनगर]{{Dead link|date=सितंबर 2021 |bot=InternetArchiveBot }} को भारत का उस समय का सबसे बड़ा साम्राज्य बना दिया बस दिल्ली एकमात्र स्वतन्त्र राज्य था। कृष्ण देव राय के शासन में आने के बाद उन्होंने अपनी सेना को इस स्तर तक पहुँचाया। [[१.५०|1.50]] लाख घुड़सवार सैनिक [[८०,०००|88,000]] पैदल सैनिक [[२०,०००|20,000]] रथ [[६४,०००|64,000]] हाथी और [[१.५०|1.50]] लाख घोड़े [[१५,०००|15,000]] तोप इत्यादि। वे महान प्रतापी, शक्तिशाली, शान्तिस्थापक, सर्वप्रिय, सहिष्णु और व्यवहारकुशल शासक थे। उन्होंने विद्रोहियों को दबाया, ओडिशा पर आक्रमण किया और पुरे भारत के भूभाग पर अपना अधिकार स्थापित किया। सोलहवीं सदी में यूरोप से पुर्तगाली भी पश्चिमी किनारे पर आकर डेरा डाल चुके थे। उन्होंने [[कृष्णदेवराय|कृष्णदेव राय]] से व्यापारिक सन्धि करने की विनती की जिससे विजयनगर राज्य की श्रीवृद्धि हो सकती थी लेकिन कृष्ण देव राय ने मना कर दिया और पुर्तगालीयों सहित [[४२|42]] विदेशी शक्तियों को भारत से खदेड़ कर बाहर किया। तुलुव वंश का अन्तिम राजा सदाशिव परम्परा को कायम न रख सका। सिंहासन पर रहते हुए भी उसका सारा कार्य रामराय द्वारा संपादित होता था। सदाशिव के बाद रामराय ही विजयनगर राज्य का स्वामी हुआ और इसे चौथे वंश अरवीदु का प्रथम सम्राट् मानते हैं। रामराय का जीवन कठिनाइयों से भरा पड़ा था। शताब्दियों से दक्षिण भारत के हिंदू नरेश इस्लाम का विरोध करते रहे, अतएव बहमनी सुल्तानों से शत्रुता बढ़ती ही गई। मुसलमानी सेना के पास अच्छी तोपें तथा हथियार थे, इसलिए विजयनगर राज्य के सैनिक इस्लामी बढ़ाव के सामने झुक गए। विजयनगर शासकों द्वारा नियुक्त मुसलमान सेनापतियों ने राजा को घेरवा दिया अतएव सन् [[१५६५|1565]] ई. में [[तालिकोट का युद्ध|तलिकोट के युद्ध]] में रामराय मारा गया। मुसलमानी सेना ने विजयनगर को नष्ट कर दिया जिससे दक्षिण भारत में भारतीय संस्कृति की क्षति हो गई। अरवीदु के निर्बल शासकों में भी वेकंटपतिदेव का नाम धिशेषतया उल्लेखनीय है। उसने नायकों को दबाने का प्रयास किया था। बहमनी तथा मुगल सम्राट में पारस्परिक युद्ध होने के कारण वह मुग़ल सल्तनत के आक्रमण से मुक्त हो गया था। इसके शासनकाल की मुख्य घटनाओं में पुर्तगालियों से हुई व्यापारिक संधि थी। शासक की सहिष्णुता के कारण विदेशियों का स्वागत किया गया और ईसाई पादरी कुछ सीमा तक धर्म का प्रचार भी करने लगे। वेंकट के उत्तराधिकारी निर्बल थे। शासक के रूप में वे विफल रहे और नायकों का प्रभुत्व बढ़ जाने से विजयनगर राज्य का अस्तित्व मिट गया।
 
[[हिन्दू संस्कृति]] के इतिहास में विजयनगर राज्य का महत्वपूर्ण स्थान रहा। विजयनगर की सेना में मुसलमान सैनिक तथा सेनापति कार्य करते रहे, परन्तु इससे विजयनगर के मूल उद्देश्य में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। विजयनगर राज्य में [[सायण]] द्वारा वैदिक साहित्य की टीका तथा विशाल मन्दिरों का निर्माण दो ऐसे ऐतिहासिक स्मारक हैं जो आज भी उसका नाम अमर बनाए हैं।
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== बाहरी कड़ियाँ==
*[https://web.archive.org/web/20130426070136/https://www.prabhasakshi.com/ShowArticle.aspx?ArticleId=130128-111850-290010 एक रहस्यमय आकर्षण है हम्पी के अवशेषों में] (प्रभासाक्षी)
*[https://historyguruji.com/विजय-नगर-साम्राज्य विजयनगर साम्राज्य]{{Dead link|date=सितंबर 2021 |bot=InternetArchiveBot }}