"अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध'": अवतरणों में अंतर

छो इसमें मैंने अयोध्या सिंह उपाध्याय साहित्यिक परिचय जोड़ा है
टैग: Reverted यथादृश्य संपादिका मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
छो इस आर्टिकल में मैंने सुधार किया है
टैग: Reverted यथादृश्य संपादिका मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
पंक्ति 33:
सन १८८९ में हरिऔध जी को सरकारी नौकरी मिल गई। वे [[कानूनगो]] हो गए। इस पद से सन १९३२ में अवकाश ग्रहण करने के बाद हरिऔध जी ने [[काशी हिन्दू विश्‍वविद्यालय|काशी हिंदू विश्वविद्यालय]] के हिंदी विभाग में अवैतनिक शिक्षक के रूप से कई वर्षों तक अध्यापन कार्य किया। सन १९४१ तक वे इसी पद पर कार्य करते रहे। उसके बाद यह निजामाबाद वापस चले आए। इस अध्यापन कार्य से मुक्त होने के बाद हरिऔध जी अपने गाँव में रह कर ही साहित्य-सेवा कार्य करते रहे। अपनी साहित्य-सेवा के कारण हरिऔध जी ने काफी ख़्याति अर्जित की। [[अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन|हिंदी साहित्य सम्मेलन]] ने उन्हें एक बार सम्मेलन का सभापति बनाया और विद्यावाचस्पति की उपाधि से सम्मानित किया। सन् १९४७ ई० में निजामाबाद में इनका देहावसान हो गया।
 
'''अयोध्या''' '''सिंह उपाध्याय साहित्यिक परिचय''' <ref>{{Cite web|url=https://educationgyani.com/|title=Home » 𝐄𝐝𝐮𝐜𝐚𝐭𝐢𝐨𝐧 𝐆𝐲𝐚𝐧𝐢|website=𝐄𝐝𝐮𝐜𝐚𝐭𝐢𝐨𝐧 𝐆𝐲𝐚𝐧𝐢|language=en-GB|access-date=2021-10-23}}</ref>
 
हरिऔधजी द्विवेदी युग के प्रतिनिधि कवि और गद्य लेखक थे। इनकी प्रमुख काव्य-रचनाएँ 'प्रियप्रवास' (खड़ीबोली का प्रथम महाकाव्य), 'वैदेही वनवास' (करुणरस-प्रधान महाकाव्य), 'पारिजात' (स्फुट गीतों का क्रमबद्ध संकलन), 'चुभते. चौपदे', 'चोखे चौपदे' (दोनों बोलचाल वाली मुहावरों से युक्त भाषा में लिखित स्फुट काव्य संग्रह) और 'रसकलश' (ब्रजभाषा के छन्दों का संकलन) हैं। 'अधखिला फूल' (उपन्यास), 'ठेठ हिन्दी का ठाठ' (उपन्यास) 'रुक्मिणी परिणय' (नाटक) आदि मौलिक गद्य रचनाओं के अतिरिक्त आलोचनात्मक और अनूदित रचनाएँ भी इनकी हैं।