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'''हर्यक वंश''' <ref>{{Cite web |url=http://www.samanyagyan.com/general-knowledge/haryak-empire-rulers-names-and-history-in-hindi.php |title=हर्यकवंश के शासक |access-date=31 मई 2017 |archive-url=https://web.archive.org/web/20170528030317/http://www.samanyagyan.com/general-knowledge/haryak-empire-rulers-names-and-history-in-hindi.php |archive-date=28 मई 2017 |url-status=dead }}</ref>
की स्थापना ५४४544 ई. पू. में [[बिम्बिसार]] के द्वारा की गई। बिम्बिसार ने गिरिव्रज ([[राजगृह]]) को अपनी राजधानी बनायी। इसने वैवाहिक सम्बन्धों (कौशल नरेश प्रसेनजित की बहन महाकोशला, वैशाली के चेटक की पुत्री चेल्लना एवं पंजाब की राजकुमारी क्षेमा) से शादी की नीति अपनाकर अपने साम्राज्य का विस्तार किया। जैन साहित्य में बिम्बिसार का नाम 'श्रेणिक' मिलता है।
 
==विस्तार==
बिम्बिसार (५४४544 ई. पू. से ४९२492 ई. पू.)- बिम्बिसार एक कूटनीतिज्ञ और दूरदर्शी शासक था। उसने प्रमुख राजवंशों में वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित कर राज्य को फैलाया।
सबसे पहले उसने लिच्छवि गणराज्य के शासक चेतक की पुत्री चेल्लना के साथ विवाह किया। दूसरा प्रमुख वैवाहिक सम्बन्ध कौशल राजा प्रसेनजीत की बहन महाकौशला के साथ विवाह किया। इसके बाद मुद्र देश(आधुनिक पंजाब) की राजकुमारी क्षेमा के साथ विवाह किया।
 
==बिम्बिसार==
महावग्ग के अनुसार बिम्बिसार की ५००500 रानियाँ थीं। उसने अवंति के शक्‍तिशाली राजा चन्द्र प्रद्योत के साथ दोस्ताना सम्बन्ध बनाया। सिन्ध के शासक रूद्रायन तथा गांधार के मुक्‍कु रगति से भी उसका दोस्ताना सम्बन्ध था। उसने अंग राज्य को जीतकर अपने साम्राज्य में मिला लिया था वहाँ अपने पुत्र [[अजातशत्रु]] को उपराजा नियुक्‍त. किया था।
बिम्बिसार [[महात्मा बुद्ध]]का मित्र और संरक्षक था। विनयपिटक के अनुसार बुद्ध से मिलने के बाद उसने बौद्ध धर्म को ग्रहण किया, लेकिन जैन और ब्राह्मण धर्म के प्रति उसकी सहिष्णुता थी। बिम्बिसार ने करीब ५२52 वर्षों तक शासन किया। बौद्ध और जैन ग्रन्थानुसार उसके पुत्र अजातशत्रु ने उसे बन्दी बनाकर कारागार में डाल दिया था जहाँ उसका ४९२492 ई. पू. में निधन हो गया।
 
==विशेष==
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==अजातशत्रु==
अजातशत्रु (४९२492-४६०460 ई. पू.)- बिम्बिसार के बाद अजातशत्रु मगध के सिंहासन पर बैठा। इसके बचपन का नाम कुणिक था। भगवान बुद्ध के विरोधी देवदत्त के उकसाने पर इन्होने अपने पिता की हत्या कर गद्दी पर बैठा। अजातशत्रु ने अपने पिता के साम्राज्य विस्तार की नीति को चरमोत्कर्ष तक पहुँचाया।
 
==शासन==
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* अजातशत्रु ने अपने प्रबल प्रतिद्वन्दी अवन्ति राज्य पर आक्रमण करके विजय प्राप्त की।
* अजातशत्रु धार्मिक उदार सम्राट था। विभिन्‍न. ग्रन्थों के आधार पर वह बौद्ध और जैन दोनों मत के अनुयायी माने जाते हैं लेकिन [[भरहुत स्तूप]] की एक वेदिका के ऊपर अजातशत्रु बुद्ध की वंदना करता हुआ दिखाया गया है।
* उसने शासनकाल के आठवें वर्ष में बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद उनके अवशेषों पर राजगृह में स्तूप का निर्माण करवाया और ४८३483 ई. पू. राजगृह की सप्तपर्णि गुफा में प्रथम बौद्ध संगीति का आयोजन किया। इस संगीति में बौद्ध भिक्षुओं के सम्बन्धित पिटकों को सुतपिटक और विनयपिटक में विभाजित किया।
* सिंहली अनुश्रुतियों के अनुसार उसने लगभग ३२32 वर्षों तक शासन किया और ४६०460 ई. पू. में अपने पुत्र उदयन द्वारा मारा गया था।
* अजातशत्रु के शासनकाल में ही महात्मा बुद्ध 463483 ई. पू. महापरिनिर्वाण तथा महावीर को भी [[कैवल्यमोक्ष (जैन धर्म)|मोक्ष]] (४६८ 468 ई. पू. में) प्राप्त हुआ था।
 
==उदायिन==
अजातशत्रु के बाद ४६०460 ई. पू. मगध का राजा बना। बौद्ध ग्रन्थानुसार इसे पितृहन्ता लेकिन जैन ग्रन्थानुसार पितृभक्‍त कहा गया है। इसकी माता का नाम पद्‍मावती था।
* [[उदायिन (राजा)|उदायिन]] शासक बनने से पहले चम्पा का उपराजा था। वह पिता की तरह ही वीर और विस्तारवादी नीति का पालक था।
* इसने [[पाटलिपुत्र]] (गंगा और सोन के संगम) को बसाया तथा अपनी राजधानी राजगृह से पाटलिपुत्र स्थापित की।
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==नागदशक एंव शिशुनाग==
[[बौद्ध]] ग्रन्थों के अनुसार उदयन के तीन पुत्र अनिरुद्ध, मंडक और नागदशक थे। उद के पुत्रो ने राज्य किया। अन्तिम राजा नागदशक था। जो अत्यन्त विलासी और निर्बल था। शासनतन्त्र में शिथिलता के कारण व्यापक असन्तोष जनता में फैला। राज्य विद्रोह कर उनका सेनापति शिशुनाग राजा बना। इस प्रकार हर्यक वंश का अन्त और शिशुनाग वंश की स्थापना ४१२492 ई.पू. में हुई।
 
==सन्दर्भ==