"ओड़िया साहित्य": अवतरणों में अंतर

पंक्ति 23:
 
16वीं शताब्दी के प्रथमार्ध में [[दिवाकरदास]] ने "जगन्नाथचरितमृत" के नाम से पंचसखाओं के जगन्नाथदास की जीवनी लिखी तथा ईश्वरदास ने चैतन्यभागवत लिखा। सालवेग नामक एक मुसलमान भक्तकवि के भी भक्तिरसात्मक अनेक पद प्राप्त हैं।
 
पञ्चसखाओं के वैशिष्त्य का वर्णन नीचे इस ओडिया कविता में देखिये-
 
: ''अगम्य भाब जानी यशोवन्त
: ''गारा कटा यन्त्र जानी अनन्त
: ''आगत नागत अच्युत भाने
: ''बलराम दास तत्त्व बखाने
: ''भक्तिर भाब जाने जगन्नाथ
: ''पञ्चसखा ए
: ''मोरा पञ्च महन्त ॥
 
इसी युग में शिशुशंकरदास, कपिलेश्वरदास, हरिहरदास, देवदुर्लभदास, तथा प्रतापराय की क्रमश : "उषाभिलाष", "कपटकेलि", "चद्रावलिविलास", "रहस्यमंजरी" और "शशिसेणा" नामक कृतियाँ भी उपलब्ध हैं।
Line 35 ⟶ 45:
वृंदावती दासी, भूपति पंडित तथा लोकनाथ विद्यालंकार की क्रमश : "पूर्णतम चंद्रोदय", प्रेमपंचामृत" तथा "एक चौतिशा" और "सर्वागसुंदरी", "पद्मावती परिणय", "चित्रकला", "रसकला" और "वृंदावन-विहार-काव्य", नाम की रीतिकालीन काव्यलक्षणों से युक्त कृपियाँ मिलती हैं।
 
'''उपेंद्रभंजउपेन्द्रभंज''' (1685-1725) - ये रीतिकाल के सर्वश्रेष्ठ कवि हैं। इनके कारण ही रीतियुग को भंजयुग भी कहा जाता है। शब्दवैलक्षण्य, चित्रकाव्य एवं छंद, अलंकार आदि के ये पूर्ण ज्ञाता थे। इनकी अनेक प्रतिभाप्रगल्भ कृतियों ने उड़िया साहित्य में इनकों सर्वश्रेष्ठ पद पर प्रतिष्ठित किया है। "वैदेहीशविलास", "कलाकउतुक", "सुभद्रापरिणय", "ब्रजलीला", "कुंजलीला", आदि पौराणिक काव्यों के अतिरिक्त लावण्यवती, कोटि-ब्रह्मांड-सुंदरी, रसिकहारावली आदि अनेक काल्पनिक काव्यग्रंथ भी हैं। इन काव्यों में रीतिकाल के समस्त लक्षणों का संपूर्ण विकास हुआ है। कहीं कहीं सीमा का अतिक्रमण कर देने के कारण अश्लीलता भी आ गई है। इनका "बंधोदय" चित्रकाव्य का अच्छा उदाहरण है। "गीताभिधान" नाम से इनका एक कोशग्रंथ भी मिलता है जिसमें कांत, खांत आदि अंत्य अक्षरों का नियम पालित है। "छंदभूषण" तथा "षड्ऋतु" आदि अनेक कृतियाँ और भी पाई जाती हैं।
 
भंजकालीन साहित्य के बाद उड़िया साहित्य में चैतन्य प्रभावित गौड़ीय वैष्णव धर्म और रीतिकालीन लक्षण, दोनों का समन्वय देखने में आता है। इस काल के काव्य प्राय: राधाकृष्ण-प्रेम-परक हैं और इनमें कहीं कहीं अश्लीलता भी आ गई है। इनमें प्रधान हैं : सच्चिदानंद कविसूर्य (साधुचरणदास), भक्तचरणदास, अभिमन्युसामंत सिंहार, गोपालकृष्ण पट्टनायक, यदुमणि महापात्र तथा बलदेव कविसूर्य आदि।