"यज्ञोपवीत": अवतरणों में अंतर

छो Jitendar Kumar Raysahab Yadav (Talk) के संपादनों को हटाकर रोहित साव27 के आखिरी अवतरण को पूर्ववत किया
टैग: वापस लिया
No edit summary
टैग: Reverted यथादृश्य संपादिका मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
पंक्ति 37:
हिन्दू धर्म में प्रत्येक हिन्दू का कर्तव्य है जनेऊ पहनना और उसके नियमों का पालन करना। हर हिन्दू जनेऊ पहन सकता है बशर्ते कि वह उसके नियमों का पालन करे। ब्राह्मण ही नहीं समाज का हर वर्ग जनेऊ धारण कर सकता है। जनेऊ धारण करने के बाद ही द्विज बालक को यज्ञ तथा स्वाध्याय करने का अधिकार प्राप्त होता है। द्विज का अर्थ होता है दूसरा जन्म। मतलब सीधा है जनेऊ संस्कार के बाद ही शिक्षा का अधिकार मिलता था और जो शिक्षा नही ग्रहण करता था उसे शूद्र की श्रेणी में रखा जाता था (वर्ण व्यवस्था)।
 
जिस लड़की को आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करना हो, वह फिर भी जनेऊ धारण नही कर सकती है। ब्रह्मचारीक्युकी तीनलड़की औरब्रह्मचारी विवाहितहो छहया धागोंगृहस्ती कीमासिक जनेऊधर्म पहनतासभी है।लड़की यज्ञोपवीतका केहोता छहहै धागोंही मेंइसी वजह से तीनवो धागेअशुद्ध स्वयंहो केजाती औरहै। तीनजिस धागेप्रकार पत्नीलड़का केमंगल बतलाएसूत्र नही पहन सकता उसी प्रकार लड़की जनेऊ गएनही हैं।<brपहन />सकती।
 
ब्रह्मचारी तीन और विवाहित छह धागों की जनेऊ पहनता है। यज्ञोपवीत के छह धागों में से तीन धागे स्वयं के और तीन धागे पत्नी के बतलाए गए हैं।<br />
 
'''जनेऊ का आध्यात्मिक महत्व:'''<br />