"यज्ञोपवीत": अवतरणों में अंतर

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हिन्दू धर्म में प्रत्येक हिन्दू का कर्तव्य है जनेऊ पहनना और उसके नियमों का पालन करना। हर हिन्दू जनेऊ पहन सकता है बशर्ते कि वह उसके नियमों का पालन करे। ब्राह्मण ही नहीं समाज का हर वर्ग जनेऊ धारण कर सकता है। जनेऊ धारण करने के बाद ही द्विज बालक को यज्ञ तथा स्वाध्याय करने का अधिकार प्राप्त होता है। द्विज का अर्थ होता है दूसरा जन्म। मतलब सीधा है जनेऊ संस्कार के बाद ही शिक्षा का अधिकार मिलता था और जो शिक्षा नही ग्रहण करता था उसे शूद्र की श्रेणी में रखा जाता था (वर्ण व्यवस्था)।
 
जिस लड़की को आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करना हो, वह फिर भी जनेऊ धारण नही कर सकती है। क्युकीब्रह्मचारी लड़कीतीन ब्रह्मचारीऔर होविवाहित याछह गृहस्तीधागों मासिककी धर्मजनेऊ सभीपहनता लड़कीहै। कायज्ञोपवीत होताके हैछह हीधागों इसी वजहमें से वोतीन अशुद्धधागे होस्वयं जातीके है।और जिसतीन प्रकारधागे लड़कापत्नी मंगलके सूत्र नही पहन सकता उसी प्रकार लड़की जनेऊबतलाए नहीगए पहनहैं।<br सकती।/>
 
ब्रह्मचारी तीन और विवाहित छह धागों की जनेऊ पहनता है। यज्ञोपवीत के छह धागों में से तीन धागे स्वयं के और तीन धागे पत्नी के बतलाए गए हैं।<br />
 
'''जनेऊ का आध्यात्मिक महत्व:'''<br />