"वेद": अवतरणों में अंतर
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छो वेद में कहीं भी ईश्वर शब्द नहीं है फर्क जगह परमेश्वर शब्द है क्योंकि वेद के अनुसार ईश्वर कोई भी नहीं है परमेश्वर है सर्वेश्वर हैं महेश्वर हैं टैग: Reverted यथादृश्य संपादिका मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन |
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*'''[[अथर्ववेद संहिता|अथर्ववेद]]''' - इसमें गुण, धर्म, आरोग्य, एवं यज्ञ के लिये 5977 कवितामयी मन्त्र हैं।
वेदों को ''अपौरुषेय'' (जिसे कोई व्यक्ति न कर सकता हो, यानि
वेदों को समझना प्राचीन काल में भारतीय और बाद में विश्व भर में एक वार्ता का विषय रहा है। इसको पढ़ाने के लिए छः अंगों- [[शिक्षा (वेदांग)|शिक्षा]], [[कल्प (वेदांग)|कल्प]], [[निरुक्त]], [[व्याकरण (वेदांग)|व्याकरण]], [[छंद|छन्द]] और [[ज्योतिष]] के अध्ययन और उपांगों जिनमें छः शास्त्र- पूर्वमीमांसा, वैशेषिक, न्याय, योग, सांख्य, और वेदांत व दस [[उपनिषद्]]- ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुण्डक, मांडुक्य, ऐतरेय, तैतिरेय, छान्दोग्य और बृहदारण्यक आते हैं। प्राचीन समय में इनको पढ़ने के बाद वेदों को पढ़ा जाता था। प्राचीन काल के [[वशिष्ठ|, वशिष्ठ]], [[शक्ति]], [[पराशर]], [[वेदव्यास]], [[जैमिनि|जैमिनी]], [[याज्ञवल्क्य]], [[कात्यायन]] इत्यादि ऋषियों को वेदों के अच्छे ज्ञाता माना जाता है। मध्यकाल में रचित व्याख्याओं में [[सायण]] का रचा चतुर्वेदभाष्य "माधवीय वेदार्थदीपिका" बहुत मान्य है। यूरोप के विद्वानों का वेदों के बारे में मत [[हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार|हिन्द-आर्य जाति]] के इतिहास की जिज्ञासा से प्रेरित रही है। अतः वे इसमें लोगों, जगहों, पहाड़ों, नदियों के नाम ढूँढते रहते हैं - लेकिन ये भारतीय परंपरा और गुरुओं की शिक्षाओं से मेल नहीं खाता। अठारहवीं सदी उपरांत यूरोपियनों के वेदों और उपनिषदों में रूचि आने के बाद भी इनके अर्थों पर विद्वानों में असहमति बनी रही है।
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