"वेदान्त दर्शन": अवतरणों में अंतर

→‎अद्वैत वेदान्त: गौड़पाद और शंकराचार्य का समय ईशा पूर्व6 00
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वेदान्त [[ज्ञान योग|ज्ञानयोग]] का एक स्रोत है जो व्यक्ति को ज्ञान प्राप्ति की दिशा में उत्प्रेरित करता है। इसका मुख्य स्रोत [[उपनिषद्|उपनिषद]] है जो [[वेद]] ग्रंथो और [[वैदिक साहित्य]] का सार समझे जाते हैं। [[उपनिषद्]] वैदिक साहित्य का अंतिम भाग है, इसीलिए इसको '''वेदान्त''' कहते हैं। कर्मकांड और उपासना का मुख्यत: वर्णन मंत्र और ब्राह्मणों में है, ज्ञान का विवेचन उपनिषदों में। 'वेदान्त' का शाब्दिक अर्थ है - 'वेदों का अंत' (अथवा सार)।वेदान्त दर्शनं के पेणता शकरांचाय् हैं
 
वेदान्त की तीन शाखाएँ जो सबसे ज्यादा जानी जाती हैं वे हैं: [[अद्वैत वेदान्त]], [[विशिष्टाद्वैत|विशिष्ट अद्वैत]] और [[द्वैत]]। [[आदि शंकराचार्य]], [[रामानुज]] और श्री [[मध्वाचार्य]] जिनको क्रमश: इन तीनो शाखाओं का प्रवर्तक माना जाता है, इनके अलावा भी [[ज्ञान योग|ज्ञानयोग]] की अन्य शाखाएँ हैं। ये शाखाएँ अपने प्रवर्तकों के नाम से जानी जाती हैं जिनमें [[भास्कर]], [[वल्लभाचार्य|वल्लभ]], [[चैतन्य]], [[निम्बार्क]], [[वाचस्पति मिश्र]], [[सुरेश्वर]] और [[विज्ञान भिक्षु]]। आधुनिक काल में जो प्रमुख [[वेदान्ती]] हुये हैं उनमें [[रामकृष्ण परमहंस]], [[स्वामी विवेकानन्द|स्वामी विवेकानंद]], [[अरविन्द घोष|अरविंद घोष]], [[स्वामी शिवानन्द|स्वामी शिवानंद]] [[स्वामी करपात्री]] और [[रमण महर्षि]] उल्लेखनीय हैं। ये आधुनिक विचारक [[अद्वैत वेदान्त]] शाखा का प्रतिनिधित्व करते हैं। दूसरे वेदान्तो के प्रवर्तकों ने भी अपने विचारों को भारत में भलिभाँति प्रचारित किया है परन्तु [[भारत]] के बाहर उन्हें बहुत कम जाना जाता है।संत मे भी ज्ञानेश्वर महाराज, तुकाराम महाराज आदि. संत पुरुषोने वेदांत के ऊपर बहुत ग्रंथ लिखे है आज भी लोग संतो के उपदेशो के अनुकरण करते है।