"वेदव्यास": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
Godwatch25 (वार्ता | योगदान) No edit summary |
छोNo edit summary |
||
पंक्ति 1:
{{ज्ञानसन्दूक महाभारत के पात्र|width1=|मुख्य शस्त्र=|देवनागरी=|संदर्भ ग्रंथ=[[महाभारत]], [[पुराण]] आदि|Caption=ऋषि वेदव्यास ([[महाभारत|जयसंहिता]])|उत्त्पति स्थल=यमुना तट [[हस्तिनापुर]]|व्यवसाय=[[वैदिक ऋषि]]|राजवंश=|नाम=कृष्णद्वैपायन वेदव्यास|माता और पिता=[[सत्यवती]] और ऋषि [[पराशर ऋषि|पराशर]]|भाई-बहन=[[भीष्म]],[[चित्रांगद]] और [[विचित्रवीर्य]] सौतेले भाई|जीवनसाथी=|अन्य नाम=कृष्णद्वैपायन, बादरायणि, पाराशर्य|संतान=[[शुकदेव]]|Image=Vyasa.jpg|काव्य कार्य=[[महाभारत]], [[श्रीमद्भगवद्गीता]], अष्टादश [[पुराण]]}}
'''महर्षि कृष्णद्वैपायन वेदव्यास''' [[महाभारत]] ग्रंथ के रचयिता थे। कृष्णद्वैपायन वेदव्यास महर्षि [[पराशर]] और [[सत्यवती]] के पुत्र थे| महाभारत ग्रंथ का लेखन भगवान् [[गणेश]] ने महर्षि वेदव्यास से सुन सुनकर किया था।<ref>{{cite web|url=https://www.bbc.com/hindi/vert-cul-44008114|title=कैसे बनी ये दुनियाः होमर के इलियड में देवताओं और युद्ध की दास्तान|access-date=23 जून 2018|archive-url=https://web.archive.org/web/20180701192325/https://www.bbc.com/hindi/vert-cul-44008114|archive-date=1 जुलाई 2018|url-status=live}}</ref> वेदव्यास महाभारत के रचयिता ही नहीं, बल्कि उन घटनाओं के साक्षी भी रहे हैं, जो क्रमानुसार घटित हुई हैं। अपने आश्रम से हस्तिनापुर की समस्त गतिविधियों की सूचना उन तक तो पहुंचती थी। वे उन घटनाओं पर अपना परामर्श भी देते थे। जब-जब अंतर्द्वंद्व और संकट की स्थिति आती थी, माता सत्यवती उनसे विचार-विमर्श के लिए कभी आश्रम पहुंचती, तो कभी हस्तिनापुर के राजभवन में आमंत्रित करती थी। प्रत्येक द्वापर युग में विष्णु व्यास के रूप में अवतरित होकर [[वेद|वेदों]] के विभाग प्रस्तुत करते हैं। पहले द्वापर में स्वयं ब्रह्मा वेदव्यास हुए, दूसरे में प्रजापति, तीसरे द्वापर में [[शुक्राचार्य]], चौथे में [[बृहस्पति]] वेदव्यास हुए। इसी प्रकार सूर्य, मृत्यु, इन्द्र, धनजंय, कृष्ण द्वैपायन अश्वत्थामा आदि अट्ठाईस वेदव्यास हुए। इस प्रकार अट्ठाईस बार वेदों का विभाजन किया गया।
प्राचीन ग्रंथों के अनुसार महर्षि वेदव्यास स्वयं ईश्वर के स्वरूप थे। निम्नोक्त श्लोकों से इसकी पुष्टि होती है।
|