"जाट": अवतरणों में अंतर
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:अक्षः सन्तर्जनो राजन् कुन्दीकश्च तमोन्नकृत।
:एकाक्षो द्वादशक्षश्च तथैवैक जटः प्रभु ।। <ref>[http://www.sacred-texts.com/hin/mbs/mbs09044.htm Mahabharata
[[देवसंहिता]] में [[पार्वती]]जी जाटों की उत्पति और कर्म के बारे में शिवजी से पूछती हैं तो वे इस तरह बताते हैं:
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