"वीरभद्र": अवतरणों में अंतर
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[[ठाकुर देशराज]] <ref>[[ठाकुर देशराज]]: जाट इतिहास , [[महाराजा सूरजमल]] स्मारक शिक्षा संस्थान , [[दिल्ली]], 1934, पेज 87-88. </ref>लिखते हैं कि जाटों की उत्पत्ति के सम्बन्ध में एक मनोरंजक कथा कही जाती है. [[महादेवजी]] के श्वसुर राजा [[दक्ष]] ने यज्ञ रचा और अन्य प्रायः सभी देवताओं को तो यज्ञ में बुलाया पर न तो [[महादेवजी]] को ही बुलाया और न ही अपनी पुत्री [[सती]] को ही निमंत्रित किया. पिता का यज्ञ समझ कर [[सती]] बिना बुलाए ही पहुँच गयी, किंतु जब उसने वहां देखा कि न तो उनके पति का भाग ही निकाला गया है और न उसका ही सत्कार किया गया इसलिए उसने वहीं प्राणांत कर दिए. [[महादेवजी]] को जब यह समाचार मिला, तो उन्होंने दक्ष और उसके सलाहकारों को दंड देने के लिए अपनी जटा से '[[वीरभद्र]]' नामक गण उत्पन्न किया. [[वीरभद्र]] ने अपने अन्य साथी गणों के साथ आकर [[दक्ष]] का सर काट लिया और उसके साथियों को भी पूरा दंड दिया. यह केवल किंवदंती ही नहीं बल्कि संस्कृत श्लोकों में इसकी पूरी रचना की गयी है जो [[देवसंहिता]] के नाम से जानी जाती है.
[[en:Virabhadra]]
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