"पेशवा": अवतरणों में अंतर
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जन्म १७७५ ई. : मृत्यु १८५१। रघुनाथराव तथा मराठा दरबार के अभिभावक नाना फड़णवीस में तीव्र मनोमालिन्य था। अत: माधवराव द्वितीय की मृत्यु पर नाना ने बाजीराव की अपेक्षा उसके अनुज चिमनाजी अप्पा को पेशवा घोषित किया (२ जून १७९६) किंतु आंतरिक दाँव पेचों से प्रभावित हो, नाना ने तुरंत ही चिमनाजी को पदच्युत कर बाजीराव को पेशवा घोषित किया। (६ दिसम्बर १७९६)। बाजीराव का अधिकांश जीवन बंदीगृह में व्यतीत होने के कारण उसकी शिक्षा दीक्षा नितांत अधूरी रही। उसकी प्रकृति भी कटु और विकृत हो गई। अयोग्य तथा अनुभवहीन होने के अतिरिक्त वह स्वभाव से दुर्मति तथा विश्ववासघाती था। अपने उपकारी नाना के विरुद्ध षड्यंत्र रचकर उसने उसके अंतिम दिवस कष्टप्रद कर दिए। १८०० में नाना की मृत्यु से बाजीराव पर रहा-सहा नियंत्रण हट जाने पर बाजीराव के दुर्व्यवहार तथा महाराष्ट्र की विच्छृंखला में वृद्धि होने लगी। पेशवा द्वारा विठोजी होल्कर की हत्या (१८०१) ने यशवंतराव होल्कर को पेशवा कर आक्रमण करने के लिये उत्तेजित किया। पेशवा तथा सिंधिया की पराजय हुई। पेशवा की अँगरेजों से बेसीन की संधि (१८०२) के उपरांत बाजीराव पुन: पुणे पहुंचा। इसी क्रम में [[द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध]] छिड़ गया। परिणामस्वरूप बाजीराव को अँगरेजों का प्रभुत्व स्वीकार करना पड़ा, तथा महाराष्ट्र की स्वतंत्रता भी समाप्त हो गई। अंतिम आँग्ल-मराठा-युद्ध में अँगरेजों ने पुन: बाजीराव को संधि के लिये विवश किया (५ नवम्बर १८१७) जिससे उसे मराठा संघ पर अपना राज्यअधिकार त्यक्त करना पड़ा। अंतत: युद्ध की समाप्ति पर मराठा साम्राज्य ही अँग्रेजों के अधिकार में हो गया। बाजीराव अँगरेजों की पेंशन ग्रहण कर विठूर (उत्तर प्रदेश) जाकर निवास करने लगा।
== नाना साहेब द्वितीय(1818-1857) ==
'''ये मराठो का आखरी पेशवा थे। ये मराठा पेशवा बाजीराव द्वितीय के दत्तक पुत्र थे इनका नाम धोदुपंत था, ये 1857 के विद्रोश में कानपुर से तात्या टोपे के साथ विद्रोह किया था ,विद्रोह को दबाने के लिए अंग्रेजी अफसर कैम्वेल ने कानपुर पर कब्जा दिसंबर 1857 कर दिया तो ,नाना साहब द्वितीय वहाँ से नेपाल चले गए।।{{मुख्य|नाना साहेब}}'''
१८५७ के [[१८५७ का प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम|स्वतंत्रता संग्राम]] में अँगरेजों के विरुद्ध लड़े।
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