"पंचकल्याणक": अवतरणों में अंतर

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'''पंचकल्याणक''', जैन ग्रन्थों के अनुसार वे पाँच मुख्य घटनाएँ हैं जो सभी [[तीर्थंकर|तीर्थंकरों]] के जीवन में घटित होतेहोती है।हैं। यहये पाँच कल्याणक हैं –
 
* गर्भ कल्याणक : जब तीर्थंकर प्रभु की आत्मा माता के [[गर्भ]] में आती है।
* जन्म कल्याणक : जब तीर्थंकर बालक का जन्म होता है।
* दीक्षा कल्याणक : जब तीर्थंकर सब कुछ त्यागकर वन में जाकर मुनि दीक्षा ग्रहण करते है।
* केवल ज्ञान कल्याणक : जब तीर्थंकर को [[केवल ज्ञान|कैवल्य]] की प्राप्ति होती है।
* मोक्ष कल्याणक : जब भगवान शरीर का त्यागकर अर्थात सभी कर्म नष्ट करके निर्वाण/ [[मोक्ष (जैन धर्म)|मोक्ष]] को प्राप्त करते है।
 
== गर्भ कल्याणक ==
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== जन्म कल्याणक ==
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* पंच कल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में दिखाई जाने वाली घटनाएँ काल्पनिक नहीं, प्रतीकात्मक हैं। हमारी आँख कितनी भी शक्तिशाली हो जाए, लेकिन वह काल की पर्तों को लांघकर ऋषभ काल में नहीं देख सकतीं।
 
* पंच कल्याण महोत्सव में कई रूपक बताए जाते हैं, जैसे गर्भ के नाटकीय दृश्य, 16 स्वप्न, तीर्थंकर का जन्मोत्सव, सुमेरु पर्वत पर अभिषेक, तीर्थंकर बालक को पालना झुलाना, तीर्थंकर बालक की बालक्रीड़ा, वैराग्य, दीक्षा संस्कार, तीर्थंकर महामुनि की आहारचर्या, केवल ज्ञान संस्कार, समवशरण, दिव्यध्वनि का गुंजन, मोक्षगमन, नाटकीय वेशभूषा में भगवान के माता-पिता बनाना, सौधर्म इंद्र बनाना, यज्ञ नायक बनाना, धनपति कुबेर बनाना आदि। ऐसा लगता है जैसे कोई नाटक के पात्र हों। किन्तु सचेत रहें ये नाटक के पात्र नहीं हैं। तीर्थंकर के पूर्वभव व उनके जीवनकाल में जो महत्वपूर्ण घटनाएँ हुईं, उन्हें स्मरण करने का यह तरीका है। उन घटनाओं को रोचक ढंग से जनसमूह में फैलाने का तरीका है। हमारी मुख्य दृष्टि तो उस महामानव की आत्मा के विकास क्रम पर रहना चाहिए जो तीर्थंकरत्व में बदल जाती है।
 
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== मोक्ष कल्याणक ==
जैन धर्म में '''मोक्ष''' का अर्थ है पुद्ग़ल कर्मों से मुक्ति। जैन दर्शन के अनुसार '''मोक्ष''' प्राप्त करने के बाद जीव (आत्मा) जन्म मरण के चक्र से निकल जाता है और लोक के अग्रभाग सिद्धशिला में विराजमान हो जाती है। सभी कर्मों का नाश करने के बाद '''मोक्ष''' की प्राप्ति होती हैं।
 
==सन्दर्भ==
{{टिप्पणीसूची}}
 
[[श्रेणी:संस्कृति]]
[[श्रेणी:जैन त्यौहार]]