"प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय": अवतरणों में अंतर

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|leader_title = संस्थापक
|leader_name = [[दादा लेखराज|लेखराज कृपलानी]] (1876–1969), जो शिष्यों में ब्रह्मा बाबा के नाम से प्रसिद्ध हैं।
|key_people = जानकी कृपलानी, जयंतीजयन्ती कृपलानी
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[[चित्र:Brahma Kumaris.jpg|पाठ=|अंगूठाकार|300x300पिक्सेल|ब्रह्मकुमारियाँ]]
 
'''प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्‍वरीय विश्‍वविद्यालय''' एक आध्यात्मिक संस्‍था है। इसकी विश्‍व के ३७ देशों में ८,५०० से अधिक शाखाएँ हैं। इस संस्था का बिजारोपण १९३० के दशक में अविभाजित भरत के सिन्ध प्रान्त के हैदराबाद नगर में हुआ। लेखराज कृपलानी इसके संस्थापक थे। इस संस्था में स्त्रियों की महती भूमिका है।
[[चित्र:Dada_Lekhraj_in_den_20er_Jahren.jpg|दाएँ|अंगूठाकार|409x409पिक्सेल|१९२० के दशक में दादा लेखराज]]
[[चित्र:Brahma_Kumaris.jpg|पाठ=|अंगूठाकार|300x300पिक्सेल|ब्रह्मकुमारियाँ]]
'''प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्‍वरीय विश्‍व विद्यालय''' एक संस्‍था है जो मेडिटेशन करवाती है। जिसकी विश्‍व के '''१३७''' देशों में ८,५०० से अधिक शाखाएँ हैं।
 
इस संस्था का मत है कि 5000 वर्ष का एक विश्व नाटक चक्र होता है जिसमें चार युग होते हैं श्रीकृष्ण सतयुग के आरम्भ में आते हैं।<ref>{{Cite web|url=https://www.brahma-kumaris.com/world-drama-cycle-hindi|title=विश्व नाटक चक्र {{!}} राजयोग कोर्स|website=Brahma Kumaris|language=en|access-date=2021-11-27}}</ref>
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उन्‍हें सांसारिक बंधनों से मुक्‍त होने और परमात्‍मा का मानवरूपी माध्‍यम बनने का निर्देश प्राप्‍त हुआ। उसी की प्रेरणा के फलस्‍वरूप सन् 1937 में उन्‍होंने इस विराट संगठन की छोटी-सी बुनियाद रखी। सन् 1937 में आध्‍यात्मिक ज्ञान और राजयोग की शिक्षा अनेकों तक पहुँचाने के लिए इसने एक संस्‍था का रूप धारण किया।
 
इस संस्‍था की स्‍थापना के लिए दादा लेखराज ने अपना विशाल कारोबार [[कलकत्‍ता]] में अपने साझेदार को सौंप दिया। फिर वे अपने जन्‍मस्‍थान हैदराबाद सिंध (वर्तमान पाकिस्‍तान) में लौट आए। यहाँ पर उन्‍होंने अपनी सारी चल-अचल संपत्ति इस संस्‍था के नाम कर दी। प्रारंभ में इस संस्‍था में केवल महिलाएँ ही थी।ब्रह्मकुमारी की मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी दादी जानकी का १०४ वर्ष की उम्र में [[माउण्ट आबू]] के ग्लोबल हास्पिटल में २७ मार्च २०२० शुक्रवार को तड़के २ बजे देहावसान हो गया <ref>https://navbharattimes.indiatimes.com/state/rajasthan/jaipur/brahma-kumaris-chief-rajyogini-dadi-janki-passes-away-pm-modi-express-condolences/articleshow/74846640.cms</ref>।<ref name="Jīvana ko palaṭāne vālī eka adbhuta jīvana-kahānī 1973 p. ">{{cite book | title=Jīvana ko palaṭāne vālī eka adbhuta jīvana-kahānī | publisher=Prajāpitā Brahmākumārī Īśvarīya Viśva-Vidyālaya | series=Jīvana ko palaṭāne vālī eka adbhuta jīvana-kahānī | issue=v. 1 | year=१९७३ | url=http://books.google.co.in/books?id=VjohAAAAMAAJ | language=lv | accessdate=२८ मार्च २०२० | page=}}</ref> बाद में दादा लेखराज को ‘प्रजापिता ब्रह्मा’ नाम दिया गया। जो लोग आध्‍या‍त्मिक शांति को पाने के लिए ‘प्रजापिता ब्रह्मा’ द्वारा उच्‍चारित सिद्धांतो पर चले, वे ब्रह्मकुमार और ब्रह्मकुमारी कहलाए तथा इस शैक्षणिक संस्‍था को ‘प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्‍वरीय विश्‍व विद्यालय’ नाम दिया गया।
 
इस विश्‍वविद्यालय की शिक्षाओं (उपाधियों) को वैश्विक स्‍वीकृति और अंतर्राष्‍ट्रीय मान्‍यता प्राप्‍त हुई है।