"मन्या सुर्वे": अवतरणों में अंतर

छो 2401:4900:198C:1054:1:2:18CC:29B2 (Talk) के संपादनों को हटाकर 2402:3A80:89F:F96:E652:2BCB:18F7:188 के आखिरी अवतरण को पूर्ववत किया
टैग: वापस लिया Reverted
InternetArchiveBot के अवतरण 4783473पर वापस ले जाया गया : - (ट्विंकल)
टैग: किए हुए कार्य को पूर्ववत करना
पंक्ति 5:
== जीवनी ==
मन्या सुर्वे का असली नाम मनोहर अर्जुन सुर्वे था। चूंकि उसके गैंग के लोग उसे मन्या पुकारते थे, इसलिए पुलिस रिकॉर्ड में भी उसका नाम मन्या सुर्वे ही दर्ज हो गया। वह मुंबई में पैदा नहीं हुआ, पर वह पला , पढ़ा और बड़ा हुआ मुंबई में ही। उसमे मुंबई के कीर्ति कॉलेज से ग्रेजुएशन (बी.ए.) किया और जब वह अपराध की दुनिया में आया, तो उसने अपने साथ पढ़े अपने कुछ दोस्तों को भी अपने गैंग में शामिल कर लिया। मन्या को अपराध की दुनिया में उसका सौतेला भाई भार्गव दादा लाया।<ref name="Surve">{{cite web|url=http://cities.expressindia.com/fullstory.php?newsid=21225|title=City’s first encounter ended two years of urban dacoity|publisher=''द इंडियन एक्सप्रेस''|date=22 जून 2002|accessdate=31 मार्च 2012}}{{Dead link|date=जून 2020 |bot=InternetArchiveBot }}</ref> भार्गव की अपने जमाने में दादर इलाके में खासी दहशत थी। भार्गव और उसके दोस्त मन्या पोधाकर के साथ मिलकर मन्या सुर्वे ने सन 1969 में किसी दांदेकर का मर्डर किया था। इस कत्ल में तीनों गिरफ्तार हुए, उन पर मुकदमा चला और तीनों को आजीवन कारावास की सजा हुई। सजा के बाद उन्हें मुंबई नहीं, बल्कि पुणे की यरवदा जेल में शिफ्ट कर दिया गया। पर सजा दिए जाने से मन्या सुर्वे सुधरा नहीं, बल्कि और खूंख्वार हो गया। उसका यरवदा जेल में ऐसा आतंक हो गया कि वह प्रतिद्वंद्वी डॉन सुहास भटकर के छोकरों को वहां पीटने और मारने लगा। परेशान जेल प्रशासन ने उसे फौरन वहां से हटाने का फैसला किया और फिर रत्नागिरी जेल भेज दिया। नाराज मन्या सुर्वे ने इसके बाद [[रत्नागिरी|रत्नागिरी जेल]] में भूख हड़ताल कर दी। हड़ताल के दौरान वह एक चर्चित विदेशी उपन्यास पढ़ता रहा, जिसमें लूट की कई अनूठी मोडस ऑपरेंडी लिखी हुई थीं। भूख हड़ताल की वजह से महज कुछ ही दिनों में जब उसका वजन 20 किलो गिर गया, तो उसे एक सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया। मन्या सुर्वे ने इस मौके का फायदा उठाया और 14 नवम्बर 1979 को वह पुलिस को चकमा देकर अस्पताल से भाग लिया। वहां से फिर वह मुंबई आ गया। मुंबई आने के बाद उसने अपना गैंग नये सिरे से बनाया। उसने अपने गैंग में धारावी के शेख मुनीर, डोंबिवली के विष्णु पाटील और मुंबई के उदय शेट्टी को खासतौर पर रखा। यही नहीं, दयानंद शेट्टी, परुषराम काटकर, मोरेश्वर नार्वेकर, किशोर सावंत जैसे तब के कुख्यात रॉबर भी इस गैंग में शामिल हुए। गैंग बनाने के बाद मन्या सुर्वे के लोगों ने सबसे पहले 5 अप्रैल 1980 को दादर में एक एंेबैस्डर कार चुराई और फिर इस चोरी की कार में बैठकर करी रोड में लक्ष्मी ट्रेडिंग कंपनी में 5 हजार 700 रुपये की लूट की। दो दशक पहले इतने रुपयों की भी अच्छी खासी अहमियत थी। इसके बाद इस गैंग ने धारावी के काला किला इलाके में उस शेख अजीज पर कातिलाना हमला किया, तो मन्या सुर्वे के दोस्त शेख मुनीर का दुश्मन था। बाद में उसने विदेशी उपन्यास में लिखी मोडस ऑपरेंडी को आजमा कर माहिम में बरखा बिजली इलाके से एक कार चुराई और फिर गोवंडी में 1 लाख 26 हजार व सायन में कैनरा बैंक में करीब डेढ़ लाख रुपये की दिनदहाड़े लूट की। स्वाभाविक है, जब उसकी दहशत बढ़ी, तो मुंबई में कानून व्यवस्था पर सवाल उठे और पुलिस की कार्यशैली पर भी उंगलियां उठीं।
 
सुर्वे ने दावूद इब्राहिम के भाई शब्बीर इब्राहिम के खून में भी शामिल था।