"नैमिषारण्य": अवतरणों में अंतर

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मंदिर
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== नाम व्युत्पत्ति ==
'नैमिष' की व्युत्पत्ति 'निमिष' शब्द से बताई जाती है, क्योंकि गौरमुख ने एक निमिष में [[असुर|असुरों]] की सेना का संहार किया था (कर्निघम, आ.स.रि. भाग १)। एक अन्य अनुश्रुति के अनुसार इस स्थान पर अधिक मात्रा में पाए जानेवाले फल निमिष के कारण इसका नाम नैमिष पड़ा। व्युत्पत्ति के विषय में तीसरा मत है कि असुरों के दलन के अवसर पर [[विष्णु]] के [[चक्र]] की निमि नैमिष में गिरी थी ([[मत्स्य पुराण|मत्स्य]] २२/१२/१४, वायुपुराण १/१५, [[ब्रह्माण्ड पुराण]] १/२/८)। किंतु दूसरे आख्यान के अनुसार जब देवताओं का दल महादेव के नेतृत्व में [[ब्रह्मा]] के पस असुरों के आतंक से पीड़ित होकर पहुँचा, तो ब्रह्मा ने अपना चक्र छोड़ा और उन्हें वह स्थान तपस्या के लिए निर्देशित किया जहाँ चक्र गिरे। नैमिष में चक्र गिरा अत: वह स्थल आज भी चक्रतीर्थ के नाम से प्रसिद्ध है। चक्रतीर्थ षट्कोणीय है। व्यास १२० फुट है। पवित्र जल नीचे के सोंतों से आता है और एक नाले के द्वारा बाहर की ओर बहता रहता है, जिसे 'गोदावरी नाला' कहते हैं। चक्र तीर्थ के अतिरिक्त व्यासगद्दी, ललिता देवी का मंदिर, भूतनाथ का मंदिर, कुशावर्त, ब्रह्मकुंड, चारों धाम, हनुमान गढ़ी, रामजानकी रीवां मंदिर, जानकीकुंड और पंचप्रयाग आदि आकर्षक स्थल हैं।
 
== पौराणिक सन्दर्भ ==