"कामाख्या मन्दिर": अवतरणों में अंतर

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== अम्बुवाची पर्व ==
विश्व के सभी तांत्रिकों, मांत्रिकों एवं सिद्ध-पुरुषों के लिये वर्ष में एक बार पड़ने वाला अम्बूवाची योग पर्व वस्तुत एक वरदान है। यह अम्बूवाची पर्व भगवती (सती) का रजस्वला पर्व होता है। पौराणिक शास्त्रों के अनुसार सतयुग में यह पर्व 16 वर्ष में एक बार, द्वापर में 12 वर्ष में एक बार, त्रेता युग में 7 वर्ष में एक बार तथा कलिकाल में प्रत्येक वर्ष जून माह (आषाढ़) में तिथि के अनुसार मनाया जाता है। यह एक प्रचलित धारणा है कि देवी कामाख्या मासिक धर्म चक्र के माध्यम से तीन दिनों के लिए गुजरती है, इन तीन दिनों के दौरान, कामाख्या मंदिर के द्वार श्रद्धालुओं के लिए बंद कर दिए जाते हैं।<ref>{{Cite web|url=https://www.kamakhya-temple.com/2020/04/ambubachi-mela.html|title=Ambubachi Mela|website=Kamakha Temple - kamakya-temple.com|access-date=2020-04-13}}{{Dead link|date=जुलाई 2020 |bot=InternetArchiveBot }}</ref> इस बार अम्बूवाची योग पर्व जून की 22, 23, 24 तिथियों में मनाया गया।
 
==आम-जनमानस की मान्यता==
भक्तों का मानना ​​​​है कि, नीलाचल पहाड़ी में भगवती [[सती (हिंदू देवी) | सती]] की योनि (गर्भ) गिर गई, और उस योनि (गर्भ) ने एक देवी का रूप धारण किया, जिसे देवी कामाख्या कहा जाता है। योनी (गर्भ) वह जगह है जहां बच्चे को 9 महीने तक पाला जाता है और यहीं से बच्चा इस दुनिया में प्रवेश करता है। और इसी को सृष्टि की उत्पत्ति का कारण माना जाता है। भक्त यहां देवी सती की गिरी हुई योनि (गर्भ) की पूजा करने के लिए आते हैं जो देवी कामाख्या के रूप में हैं और दुनिया के निर्माण और पालन-पोषण के कारण देवी सती के गर्भ की पूजा करते हैं। जिस प्रकार मनुष्य अपने माँ की योनि (गर्भ) से जन्म लेता है, लोगो की मान्यता है उसी प्रकार जगत की माँ देवी सती की योनि से संसार की उत्पत्ति हुई है जो कामाख्या देवी के रूप में है।<ref>https:/ /www.boldsky.com/yoga-spirituality/faith-mysticism/2014/ambubasi-when-mother-earth-menstruates-041120.html</ref>
 
== पौराणिक सन्दर्भ ==