"पेशवा": अवतरणों में अंतर
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[[मराठा साम्राज्य]] के प्रधानमन्त्रियों को '''पेशवा''' ([[मराठी भाषा|मराठी]]: ''पेशवे'' ) कहते थे। ये राजा के सलाहकार परिषद [[अष्टप्रधान]] के सबसे प्रमुख होते थे। राजा के बाद इन्हीं का स्थान आता था। [[छत्रपती शिवाजी महाराज]] के [[अष्टप्रधान]] मन्त्रिमण्डल में प्रधानमन्त्री अथवा वजीर का [[पर्यायवाची]] पद था। 'पेशवा' [[फ़ारसी भाषा|फारसी]] शब्द है जिसका अर्थ 'अग्रणी' है।<ref>भूमिका में नाममात्र के परिवर्तन के सिवा अग्रलिखित यह पूरा लेख [[हिन्दी विश्वकोश|हिंदी विश्वकोश]], भाग-7, नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी, संस्करण-1966, पृष्ठ-338 से 341 तक से प्रायः यथावत (संदर्भ ग्रंथ के नाम सहित) उद्धृत है, जिसके लेखक (हिंदी विश्वकोश में) डाॅ० राजेंद्र नागर हैं।</ref>
पेशवा का पद वंशानुगत नहीं था। आरम्भ में, सम्भवत: पेशवा मर्यादा में अन्य सदस्यों के बराबर ही माना जाता था। श्रीमंत छत्रपति [[राजाराम]] महाराज के समय में पन्त-प्रतिनिधि का नवनिर्मित पद, राजा का प्रतिनिधि होने के नाते पेशवा से ज्येष्ठ ठहराया गया था। पेशवाई सत्ता के वास्तविक संस्थापन का, तथा पेशवा पद को वंशपरम्परागत रूप देने का श्रेय ऐतिहासिक क्रम से सातवें पेशवा, बालाजी विश्वनाथ को है। किन्तु, यह परिवर्तन [[शाहु|छत्रपति शाहू]] महाराज के सहयोग और सहमति द्वारा ही सम्पन्न हुआ,
; पेशवाओं का शासनकाल-
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