"सिद्ध साहित्य": अवतरणों में अंतर

छो 2401:4900:198B:973D:1:2:6793:DDB1 (Talk) के संपादनों को हटाकर रोहित साव27 के आखिरी अवतरण को पूर्ववत किया
टैग: वापस लिया
हटाने के लिये नामांकित किया गया; देखें विकिपीडिया:पृष्ठ हटाने हेतु चर्चा/लेख/सिद्ध साहित्य
पंक्ति 1:
{{हहेच लेख| कारण=[[वि:मूल शोध|मूल शोध]]।| चर्चा_पृष्ठ= विकिपीडिया:पृष्ठ हटाने हेतु चर्चा/लेख/सिद्ध साहित्य}}
[[सिद्ध (बौद्ध-धर्म)|सिद्धों]] का सम्बन्ध [[बौद्ध धर्म]] की [[वज्रयान| वज्रयानी शाखा]] से है। ये [[भारत]] के पूर्वी भाग में सक्रिय थे। इनकी संख्या 84 मानी जाती है जिनमें [[सरह]]प्पा, [[शबरप्पा]], [[लुइप्पा]], [[डोम्भिप्पा]], [[कुक्कुरिप्पा]] ((कणहपा))आदि मुख्य हैं। [[सरह]]प्पा प्रथम सिद्ध कवि थे। राहुल सांकृत्यायन ने इन्हें हिन्दी का प्रथम कवि माना तथा सर्वसम्मती से इन्हें हिन्दी का प्रथम कवि स्वीकार किया गया, इन्होंने [[भारत में जातिवाद|जातिवाद]] और वाह्याचारों पर प्रहार किया। [[देहवाद]] का महिमा मण्डन किया और [[सहज साधना]] पर बल दिया। ये [[महासुखवाद]] द्वारा ईश्वरत्व की प्राप्ति पर बल देते हैं।
इन सब में लुइपा का स्थान सबसे उच्च है।