"सिद्ध साहित्य": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
No edit summary |
|||
पंक्ति 5:
== प्रसार क्षेत्र ==
सिद्ध सा हित्य [[बिहार]] से लेकर [[असम]] तक फैला था। [[राहुल सांकृत्यायन|राहुल संकृत्यायन]] ने 84 सिद्धों के नामों का उल्लेख किया है जिनमें सिद्ध '[[सरह]]पा' से यह साहित्य आरम्भ होता है। [[बिहार]] के नालन्दा विद्यापीठ इनके मुख्य अड्डे माने जाते हैं। बख्तियार खिलजी ने आक्रमण कर इन्हें भारी नुकसान पहुचाया बाद में यह 'भोट' देश चले गए। इनकी रचनाओं का एक संग्रह महामहोपाध्याय [[हरप्रसाद शास्त्री]] ने [[बाङ्ला भाषा|बांग्ला भाषा]] में 'बौद्धगान-ओ-दोहा' के नाम से निकाला। सिद्धों की भाषा में 'उलटबासी' शैली का पूर्व रुप देखने को मिलता है। इनकी भाषा को संध्या भाषा कहा गया है, [[हजारीप्रसाद द्विवेदी|हजारी प्रसाद द्विवेदी]] ने सिद्ध साहित्य की प्रशंसा करते हुए लिखा है कि, "जो जनता तात्कालिक नरेशों की स्वेच्छाचारिता, पराजय त्रस्त होकर निराशा के गर्त में गिरी हुई थी, उनके लिए इन सिद्धों की वाणी ने संजीवनी का कार्य किया। साधना अवस्था से निकली सिद्धों की वाणी '[[चर्यापद|चरिया गीत / चर्यागीत]]' कहलाती है।
== वर्गीकरण ==
सिद्ध साहित्य को मुख्यतः निम्न तीन श्रेणियों में विभाजित किया जाता है:-
|