"अनावृतबीजी": अवतरणों में अंतर
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[[चित्र:Encephalartos sclavoi reproductive cone.jpg|thumb|220px|एक [[कोणधारी]] का शंकु - कोणधारी अनावृतबीजी वृक्षों की सबसे विस्तृत श्रेणी है]]
'''अनावृतबीजी''' या '''विवृतबीज''' (<small>gymnosperm, जिम्नोस्पर्म</small>, अर्थ: नग्न बीज) ऐसे पौधों वृक्षों को कहा जाता है जिनके बीज फूलों में पनपने और फलों में बंद होने की बजाए छोटी टहनियों या [[कोणधारी कोण|शंकुओं]] में खुली ('नग्न') अवस्था में होते हैं। यह दशा '[[सपुष्पक पौधा|आवृतबीजी]]' (<small>angiosperm, ऐंजियोस्पर्म</small>) वनस्पतियों से विपरीत होती है जिनपर फूल आते हैं (जिस कारणवश उन्हें 'फूलदार' या 'सपुष्पक' भी कहा जाता है) और जिनके बीज अक्सर फलों के अन्दर सुरक्षित होकर पनपते हैं। अनावृतबीजी वृक्षों का सबसे बड़ा उदाहरण [[कोणधारी]] हैं, जिनकी श्रेणी में [[चीड़]] (पाइन), [[तालिसपत्र]] (यू), [[सरल (वृक्ष)|प्रसरल]] (स्प्रूस), [[सनोबर]] (फ़र) और [[देवदार]] (सीडर) शामिल हैं।<ref name="ref60hipel">[http://books.google.com/books?id=WK86jibGx0MC Life: The Science of Biology] {{Webarchive|url=https://web.archive.org/web/20140628091917/http://books.google.com/books?id=WK86jibGx0MC |date=28 जून 2014 }}, David Sadava, David M. Hillis, H. Craig Heller, May Berenbaum, Macmillan, 2009, ISBN 978-1-4292-4644-6, ''... Gymnosperms (which means “naked-seeded”) are so named because their ovules and seeds are not protected by ovary or fruit tissue ...''</ref>[[साइकस]] की पौध [[आंध्रप्रदेश]] व [[पश्चिम बंगाल]] के कोलकाता शहर में तैयार की जाती है। इसका बड़ा तना लोगों का ध्यान खींचता है। वर्ष में एक बार इस पर नई पत्तियां आती हैं। इसमें गोबर की खाद डाली जाती है। इसका तना काले रंग का होता है। साइकस के पौधे की कीमत उसकी उम्र के साथ बढ़ती है।
== परिचय ==
विवृतबीज वनस्पति जगत् का एक
इस वर्ग के पौधे बड़े वृक्ष या साइकस (cycas) जैसे छोटे, या ताड़ के ऐसे, अथवा झाड़ी की तरह के होते हैं। सिकोया जैसे बड़े वृक्ष (३५० फुट से भी ऊँचे), जिनकी आयु हजारों वर्ष की होती है, वनस्पति जगत् के सबसे बड़े और भारी वृक्ष हैं। वैज्ञानिकों ने विवृतबीजों का वर्गीकरण अनेक प्रकार से किया है। वनस्पति जगत् के दो मुख्य अंग हैं : क्रिप्टोगैम (Cryptogams) और फैनरोगैम (Phanerogams)। फैनरोगैम बीजधारी होते हैं और इनके दो प्रकार हैं : विवृतबीज और आवृतबीज; परंतु आजकल के वनस्पतिज्ञ ने वनस्पति जगत् का कई अन्य प्रकार का वर्गीकरण करना आरंभ कर दिया है, जैसे (१) वैस्कुलर पौधे (Vascular) या ट्रेकियोफाइटा (Tracheophyta) और (२) एवैस्कुलर या नॉन वैस्कुलर (Avascular or nonvascular) या एट्रैकियोफ़ाइटा (Atracheophyta) वर्ग। वैस्कुलर पौधों में जल, लवण लवण इत्यादि के लिए बाह्य ऊतक होते हैं। इन पौधों को (क) लाइकॉप्सिडा (Lycopsida), (ख) स्फीनॉप्सिडा (Sphenopsida) तथा (ग) टिरॉप्सिडा (Pteropsida) में विभाजित करते हैं। टिरॉप्सिडा के अंतर्गत अन्य फ़र्न, विवृतबीज तथा आवृतबीज रखे जाते हैं।
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=== टेरिडोरपर्मेलीज़ या साइकाडोफिलिकेली ===
इस गण कें अंतर्गत आनेवाले पौधे भूवैज्ञानिक काल के कार्बनी (Carboniforous) युग में, लगभग २५ करोड़ वर्ष से भी पूर्व के जमाने में, पाए जाते थे। इस गण के पौधे शुरू में फर्न समझे गए थे, परंतु इनमें बीज की खोज के बाद इन्हें टैरिडोस्पर्म कहा जाने लगा। पुराजीव कल्प के टेरिडोस्पर्म तीन काल में बाँटे गए हैं -
: (१) लिजिनॉप्टेरिडेसिई (Lyginopteridaceae),
: (२) मेडुलोज़ेसिई (Medullosaceae), और :(३) कैलामोपिटिए सिई (Calamopiteyaceae)। लिजिनाप्टेरिडेसिई की मुख्य जाति कालिमाटोथीका हानिंगघांसी (Calymmatotheca hoeninghansi) है। इसके तन को लिजिनॉप्टेरिस (Lyginopteris) कहते हैं, जो तीन या चार सेंटीमीटर मोटा होता था। इसके अंदर मज्जा (pith) में काले कड़े ऊतक गुच्छे, जिन्हें स्क्लेरॉटिक नेस्ट (Sclerotic nest) कहते हैं, पाए जाते थे। बाह्य वल्कुट (cortex) भी विशेष प्रकार से मोटे और पतले होते थे। तनों से निकलनेवाली पत्तियों के डंठल में विशेष प्रकार के समुंड रोम (capitate hair) पाए जाते थे। इनपर लगनेवाले बीज मुख्यत: लैजिनोस्टोमा लोमेक्साइ (Lagenostoma lomaxi) कहलाते हैं। ये छोटे गोले (आधा सेंटीमीटर के बराबर) आकार के थे, जिनमें परागकण एक परागकोश में इकट्ठे रहते थे। इस स्थान पर एक फ्लास्क के आकार का भाग, जिसे लैजिनोस्टोम कहते हैं, पाया जाता था। अध्यावरण (integument) और बीजांडकाय (nucellus) आपस में जुटे रहते थे। बीज एक प्रकार के प्याले के आकार की प्यालिका (cupule) से घिरा रहता था। इस प्यालिका के बाहर भी उसी प्रकार के समुंड रोम, जैसे तने और पत्तियों के डंठल पर उगते थे, पाए जाते थे। अन्य प्रकार के बीजों को कोनोस्टोमा (Conostoma) और फाइसोस्टोमा (Physostoma) कहते हैं। लैजिनॉप्टेरिस के परागकोश पुंज (poller bearing organ) को क्रॉसोथीका (Crossotheca) और टिलैंजियम (Telangium) कहते हैं। क्रॉसोथीका में निचले भाग चौड़े तथा ऊपर के पतले होते थे। टहनियों जैसे पत्तियों के विशेष आकार पर, नीचे की ओर किनारे से दो पंक्तियों में परागकोश लटके रहते थे। टिलैंजियम में परागकोश ऊपर की ओर मध्य में निकले होते थे।
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