"सत्कार्यवाद": अवतरणों में अंतर

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(जिसका अस्तित्व है वह) असत् (जिसका अस्तित्व नहीं है) से उत्पन्न नहीं हो सकता।
 
सत्कार्यवाद योग दर्शन से भी सम्बद्ध है। [[ईश्वकृष्णईश्वरकृष्ण]] ने अपनी [[सांख्यकारिका]] ने कहा है कि-
 
: ''असदकरणादुपादानग्रहणात् सर्वसम्भवाभावात् ।
 
: ''शक्तस्य शक्यकरणात् कारणभावाच्च सत्कार्यम् ॥ ९ ॥<ref>{{Cite web|title=Ishvarakrishna's sAnkhyakArikA|url=http://sanskritdocuments.org/doc_z_misc_major_works/IshvarakRiShNasAnkyakArikA.pdf|url-status=live|archive-url=https://web.archive.org/web/20120223144612/http://www.sanskritdocuments.org/all_pdf/IshvarakRiShNasAnkyakArikA.pdf|archive-date=2012-02-23|access-date=2020-11-23|website=sanskritdocuments.org}}</ref>
: '''अर्थ : सत्कार्य (कार्य की कारण में ही पूर्व-उपस्थिति) पाँच कारणों से है - असदकारण से (असदकारणात् ) , उपादानग्रहण से ( उपादानग्रहणात् ), सर्वसम्भवाभाव से ( सर्वसम्भवाभावात् ) , शक्त के शक्यकरण से (शक्तस्य शक्यकरणात् ), कारणभाव (कारणभावत् )
# '''असदकारण''' : जिसका अस्तित्व नहीं है, उसे उत्पन्न नहीं किया जा सकता।
# '''उपादानग्रहण''' : कुछ उत्पन्न करने के लिये सही उपादान (material) होना चाहिये।
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# '''शक्तस्य शक्यकरण''' : कारण केवल वही कर सकता है जो उसकी कर सकने की सीमा में हो।
# '''कारणभाव''' : कार्य की प्रकृति, कारण जैसी होती है।<ref>{{cite book|title=On Being and What There Is|author=Wihelm Halbfass|publisher=SUNY Press|pages=28, 56|url=https://books.google.com/books?id=x7cLHPj1dj8C&q=Satkaryavada&pg=PA56|isbn=978-0-7914-1178-0|date=1992-07-28}}</ref>
 
==सन्दर्भ==
{{टिप्पणीसूची}}
 
 
[[श्रेणी:भारतीय दर्शन]]