"सांख्यकारिका": अवतरणों में अंतर
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सांख्यकारिका को इसकी रचना के बाद से ही लोकप्रियता एवं प्रामाणिकता प्राप्त हुई कि प्रायः तभी से इसकी व्याख्याओं या टीकाओं की परम्परा चल पड़ी। इसकी सर्वप्राचीन वृत्ति [[माठर वृत्ति]] है। इस वृत्ति के रचयिता आचार्य माठर सम्राट् [[कनिष्क]] के काल में वर्तमान माने जाते हैं। इस प्रकार यह वृत्ति प्रथम शताब्दी ईसवी की रचना मानी जाती है। कालक्रम से माठरवृत्ति के बाद सांख्यकारिका की दूसरी प्रमुख व्याख्या [[गौडपादभाष्य]] मानी जाती है। विद्वानों का बहुमत इसके रचयिता गौडपाद को माण्डूक्यकारिका के रचयिता एवं अद्वैत वेदान्त के आचार्य गौडपाद से भिन्न मानने के पक्ष में हैं। सांख्यकारिका के व्याख्याकार गौडपाद का समय प्रायः ईसा की षष्ठ शताब्दी माना जाता है। कुछ विद्वान् ईसा की सप्तम शताब्दी मानते हैं। माठरवृत्ति और गौडपाद-भाष्य में बहुत से अंशों में साम्य के दर्शन होते हैं। गौडपादभाष्य संक्षिप्त होते हुए भी गम्भीर है।
सांख्यकारिका की ‘युक्तिदीपिका’ टीका भी प्राचीन टीकाओं में से एक है। इसके रचयिता का नाम अज्ञात है। इसमें प्राचीन सांख्याचार्यों के विभिन्न सिद्धान्तों का उल्लेख किया गया है। फलतः इस टीका से सांख्य-सिद्धान्तों की पर्याप्त जानकारी प्राप्त होती है। चूंकि इसमें [[वसुबन्धु|वसुबंधु]] एवं [[
आचार्य वाचस्पति मिश्र की ‘सांख्यतत्त्वकौमुदी’ टीका सांख्यकारिका की सर्वाधिक प्रसिद्ध टीका है। इसने दार्शनिक जगत् में पर्याप्त ख्याति एवं लोकप्रियता प्राप्त की है। इस टीका में सांख्यकारिका के प्रतिपाद्य विषय को पूर्णतः उद्घाटित करने का प्रयत्न किया गया है।
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