"निर्जला एकादशी": अवतरणों में अंतर

निर्जला एकादशी कथा
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== दूसरी कथा ==
एक बार महर्षि व्यास पांडवो के यहाँ पधारे। भीम ने महर्षि व्यास से कहा, भगवान! युधिष्ठर, अर्जुन, नकुल, सहदेव, माता कुन्ती और द्रौपदी सभी एकादशी का व्रत करते है और मुझसे भी व्रत रख्ने को कहते है परन्तु मैं बिना खाए रह नही सकता है इसलिए चौबीस एकादशियो पर निरहार रहने का कष्ट साधना से बचाकर मुझे कोई ऐसा व्रत बताईये जिसे करने में मुझे विशेष असुविधा न हो और सबका फल भी मुझे मिल जाये। महर्षि व्यास जानते थे कि भीम के उदर में बृक नामक अग्नि है इसलिए अधिक मात्रा में भोजन करने पर भ उसकी भूख शान्त नही होती है महर्षि ने भीम से कहा तुम ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी का व्रत रखा करो। इस व्रत मे स्नान आचमन मे पानी पीने से दोष नही होता है इस व्रत से अन्य तेईस एकादशियो के पुण्य का लाभ भी मिलेगा तुम जीवन पर्यन्त इस व्रत का पालन करो भीम ने बडे साहस के साथ निर्जला एकादशी व्रत किया, जिसके परिणाम स्वरूप प्रातः होते होते वह सज्ञाहीन हो गया तब पांडवो ने गगाजल, तुलसी चरणामृत प्रसाद, देकर उनकी मुर्छा दुर की। इसलिए इसे [[निर्जला एकादशी|भीमसेन एकादशी]] भी कहते हैं। (संदर्भ - ब्रह्मवैवर्त '''पुराण, पद्म पुराण में कथा)'''
 
== विधान ==
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==बाहरी कड़ियाँ==
 
* [https://hindikathabhajan.com/%e0%a4%a8%e0%a4%bf%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%9c%e0%a4%b2%e0%a4%be-%e0%a4%8f%e0%a4%95%e0%a4%be%e0%a4%a6%e0%a4%b6%e0%a5%80-%e0%a4%95%e0%a4%ac-%e0%a4%b9%e0%a5%88-%e0%a4%a8%e0%a4%bf%e0%a4%b0%e0%a5%8d/ निर्जला एकादशी कथा]
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