"सुरकोतड़ा": अवतरणों में अंतर
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| doi=10.1080/02666030.1997.9628544
}}</ref><ref name="Cf. Meadow, R. H. and Patel, 1997">Cf. Meadow, R. H. and Patel, 1997.</ref> [[गुजरात]] के [[कच्छ]] ज़िले में स्थित सुरकोतड़ा की खोज 1964 में जगपति जोशी ने किया था।<ref>{{cite book |last1=शिवस्वरूप |first1=सहाय |title=भारतीय पुरातत्त्व और प्रागैतिहासिक संस्कृतियाँ |date=2004 |publisher=मोतीलाल बनारसीदास |location=दिल्ली |isbn=81-208-2078-9 |pages=213-14 |url=https://books.google.co.in/books?id=NKQdhAN3mMwC&newbks=1&newbks_redir=0&lpg=PA213&dq=%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%A4%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A4%BE&hl=hi&pg=PA214#v=onepage&q=%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%A4%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A4%BE&f=false}}</ref> यहाँ से नियमित आवास के साक्ष्य मिले हैं। एक ही रक्षा प्राचीर से घिरा हुआ एक सैन्धव कालीन नगर अपनी कई विशेषताओं के लिए मशहूर है। इसके दुर्ग में दक्षिण और उत्तर में एक-एक दरवाजे हैं। इसके दक्षिण दरवाजे के पास एक रक्षक आवास था। इसमें से एक दरवाजा नगर को दुर्ग से जोड़ता था। दुर्ग टीले में से 9 कमरों वाला एक विशाल भवन मिला है। इसके अलावा दुर्ग टीले के उत्तर पश्चिम में ही समाधि क्षेत्र मिला हुआ है। यह शवाधान की एक नई विधि को दर्शाता है। यहाँ से चार कलश शवाधान के साक्ष्य मिले हैं जिसमें से एक कब्र पत्थर की पट्टिका से ढकी हुई है। सुरकोतड़ा के नगर क्षेत्र से ही घोड़े की अस्थियाँ मिली
==सन्दर्भ==
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