"शैवाल": अवतरणों में अंतर

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Prajanan
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शैवालों में पोषण की समस्या स्वत: हल होती है। इनमें पर्णहरित विद्यमान रहता है, इसलिए [[प्रकाशसंश्लेषण]] की विधि से ये अपना भोजन स्वयं बना लेते हैं। अत: ऐसे पौधे स्वपोषी (Autotrophs) कहे जाते हैं।
 
== जननPrajanan ==
शैवालों में जनन कई प्रकार से होता है। कुछ तो स्वयं विभाजित होते रहते हैं और बढ़ते चले जाते हैं। यह क्रिया अधिकतर कोशिका विभाजन की रीति से होती है। एककोशिक शैवाल इसी रीति से जनन करते हैं। बड़े कोटि के शैवालों में अलैंगिक तथा लैंगिक दोनों प्रकार के जनन होते हैं। अलैंगिक जनन कई ढंग से हो सकता है। कुछ शैवालों में चलबीजाणुओं (Zoospores) की उत्पत्ति होती है। चलबीजाणु नंगे जीवद्रव्य (Protoplasm) का पिंड होता है, जो कशाभिका के सहारे एक स्थान से दूसरे स्थान पर जा सकता है। चलबीजाणु पानी के शैवालों में पैदा होते हैं। ये स्वत: अंकुरित होकर नया शैवाल बनाते हैं। जब पानी की मात्रा कम होने लगती है, अथवा विपरीत वातावरण आ पड़ता है, तो अचलबीजाणु (Aplanospores) बनते हैं, जो मोटे आवरण से चारों ओर घिरे रहते हैं। इनमें कशाभिका नहीं होती। कुछ शैवालों में अलैंगिक जनन निश्चेष्ट बीजाणुओं (akinetes) द्वारा होता है। इनके बनने की रीति यह है कि शैवाल की कोई भी कोशिका गोलाकर होकर मोटी तह के आवरण रूप में चारों ओर से आच्छादित हो जाती है। ऐसी दशा तो केवल असंगत परिस्थिति में ही देखी जाती है, विशेषकर जब शुष्क और गर्म वातावरण हो जाता है। जब अनुकूल वातावरण प्राप्त हो जाता है तब इनका अंकुरण होने लगता है और ऊपरी, मोटी तह की दीवार धीरे से टूट जाती है और नवजात शैवाल का निर्माण होने लगता है। कुछ शैवाल पानी के किनारे पड़े रहते हैं। जब विपरीत वातावरण होता है, तब इनकी कोशिकाओं में विभाजन तो होता ही रहता है, परंतु ये विलग नहीं हो पातीं, अपितु कोशिका की दीवार मोटी होती जाती है और उसके अंदर कई कोशिकाएँ भरी पड़ी रहती हैं। जब अनुकूल वातावरण आता है, तब ये अंकुरित होकर नया शैवाल बनाती हैं। ऐसी दशा को पैलमेला अवस्था (Palmella stage) कहते हैं।
 
"https://hi.wikipedia.org/wiki/शैवाल" से प्राप्त