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[[इंदिरा गांधी]] ने उनसे वादा किया था चुनाव जीतने के बाद गाय के सारे कत्लखाने बंद हो जायेगें, जो अंग्रेजों के समय से चल रहे हैं। लेकिन इंदिरा गांधी मुसलमानों और कम्यूनिस्टों के दबाव में आकर अपने वादे से मुकर गयी थी। जब तत्कालीन प्रधानमंत्री ने संतों इस मांग को ठुकरा दिया, जिसमें संविधान में संशोधन करके देश में गौ वंश की हत्या पर पाबन्दी लगाने की मांग की गयी थी, तो संतों ने 7 नवम्बर 1966 को संसद भवन के सामने धरना शुरू कर दिया। हिन्दू पंचांग के अनुसार उस दिन विक्रमी संवत 2012 कार्तिक शुक्ल की अष्टमी थी जिसे '[[गोपाष्टमी]]' भी कहा जाता है।
 
इस धरने में [[भारत साधु समाज]], [[सनातन धर्म]], [[जैन धर्म]] आदि सभी भारतीय धार्मिक समुदायों ने इसमें बढ़-चढ़कर भाग लिया। इस आन्दोलन में चारों शंकराचार्य तथा स्वामी करपात्री जी भी जुटे थे। जैन मुनि सुशील कुमार जी तथा सार्वदेशिक सभा के प्रधान [[लाला रामगोपाल शालवाले]] जी और [[हिन्दू महासभा]] के प्रधान प्रो॰ रामसिंह जी भी बहुत सक्रिय थे। श्री संत [[प्रभुदत्त ब्रह्मचारी]] तथा पुरी के जगद्‍गुरु शंकराचार्य श्री [[स्वामी निरंजनदेव तीर्थ]] तथा [[महात्मा रामचन्द्र वीर]] के आमरण अनशन ने आन्दोलन में प्राण फूंक दिये थे।
 
लेकिन इंदिरा गांधी ने उन निहत्थे और शांत संतों पर पुलिस के द्वारा गोली चलवा दी, जिससे कई साधु मारे गए । लेकिन संत [[राम चन्द्र वीर]] अनशन पर डटे रहे जो 166 दिनों के बाद उनकी [[मृत्यु]] के बाद ही समाप्त हुआ था। इस हत्याकांड से क्षुब्ध होकर तत्कालीन गृहमंत्री [[गुलजारी लाल नंदा]] ने त्यागपत्र दे दिया और इस कांड के लिए अपनी ही सरकार को जिम्मेदार बताया था।