"सिद्ध साहित्य": अवतरणों में अंतर

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''' सिद्ध साहित्य ''' ब्रजयानी [[सिद्ध (बौद्ध-धर्म)|सिद्धों]] के द्वारा रचा गया साहित्य है। इनका संबंध [[बौद्ध धर्म]] से है। ये [[भारत]] के पूर्वी भाग में सक्रिय थे। इनकी संख्या 84 मानी जाती है जिनमें [[सरह]]प्पा, [[शबरप्पा]], [[लुइप्पा]], [[डोम्भिप्पा]], [[कुक्कुरिप्पा]] ((कणहपा)) आदि मुख्य हैं। इन्होंने [[अपभ्रंश]] मिश्रित पुरानी हिंदी तथा अपभ्रंश में रचनाएं की हैं। [[सरह]]प्पा प्रथम सिद्ध कवि थे। [[राहुल सांकृत्यायन]] ने इन्हें हिन्दी का प्रथम कवि माना है।
साधना अवस्था से निकली सिद्धों की वाणी '[[चर्यापद|चरिया गीत / चर्यागीत]]' कहलाती है।
 
सिद्ध साहित्य में [[जातिवाद|जातिवाद]] और वाह्याचारों पर प्रहार किया गया है। इसमें [[देहवाद]] का महिमा मण्डन और [[सहज साधना]] पर बल दिया गया है। इसमें [[महासुखवाद]] द्वारा ईश्वरत्व की प्राप्ति पर बल दिया गया है। सिद्ध साहित्य के रचयिताओं में लुइपा सर्वश्रेष्ठ हैं।
 
== प्रसार क्षेत्र ==
सिद्ध सा हित्य [[बिहार]] से लेकर [[असम]] तक फैला था। [[राहुल सांकृत्यायन|राहुल संकृत्यायन]] ने 84 सिद्धों के नामों का उल्लेख किया है जिनमें सिद्ध '[[सरह]]पा' से यह साहित्य आरम्भ होता है। [[बिहार]] के नालन्दा विद्यापीठ इनके मुख्य अड्डे माने जाते हैं। बख्तियार खिलजी ने आक्रमण कर इन्हें भारी नुकसान पहुचाया बाद में यह 'भोट' देश चले गए। इनकी रचनाओं का एक संग्रह महामहोपाध्याय [[हरप्रसाद शास्त्री]] ने [[बाङ्ला भाषा|बांग्ला भाषा]] में 'बौद्धगान-ओ-दोहा' के नाम से निकाला।
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*(२) उपदेश परक साहित्य
*(३) साधना सम्बन्धी या रहस्यवादी साहित्य
 
== भाषा-शैली ==
सिद्धों की भाषा में 'उलटबासी' शैली का पूर्व रुप देखने को मिलता है। इनकी भाषा को संध्या भाषा कहा गया है।
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== प्रमुख सिद्ध कवि व उनकी रचनाएँ==
 
* [[सरह]]पा (769 ई.) - दोहाकोष
 
* लुइपा (773 ई. लगभग) -- लुइपादगीतिका
 
* शबरपा (780 ई.) -- चर्यापद , महामुद्रावज्रगीति , वज्रयोगिनीसाधना
 
* कण्हपा (820 ई. लगभग) -- चर्याचर्यविनिश्चय।चर्याचर्यविनिश्चय, कण्हपादगीतिका
* डोंभिपा (840 ई. लगभग)-- डोंबिगीतिका, योगचर्या, अक्षरद्विकोपदेश
 
* डोंभिपा (840 ई. लगभग) -- डोंबिगीतिका, योगचर्या, अक्षरद्विकोपदेश
 
* भूसुकपा-- बोधिचर्यावतार
 
* आर्यदेवपा -- कावेरीगीतिका
 
* कंवणपा -- चर्यागीतिका
 
* कंबलपा -- असंबंध-सर्ग दृष्टि
 
* गुंडरीपा -- चर्यागीति
 
* जयनन्दीपा -- तर्क मुदँगर कारिका
 
* जालंधरपा -- वियुक्त मंजरी गीति, हुँकार चित्त , भावना क्रम
 
* दारिकपा -- महागुह्य तत्त्वोपदेश
 
* धामपा -- सुगत दृष्टिगीतिकाचर्या
== आलोचना ==
सिद्ध साहित्य को आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने सांप्रदायिक शिक्षा मात्र कहा जिनका बाद में हजारी प्रसाद द्विवेदी ने खंडन किया।।
 
== आलोचना ==
सिद्ध साहित्य को [[आचार्य रामचंद्र शुक्ल]] ने सांप्रदायिक शिक्षा मात्र कहा जिनका बाद में [[हजारी प्रसाद द्विवेदी]] ने खण्डन किया। [[हजारीप्रसाद द्विवेदी|हजारी प्रसाद द्विवेदी]] ने सिद्ध साहित्य की प्रशंसा करते हुए लिखा है कि, "जो जनता तात्कालिक नरेशों की स्वेच्छाचारिता, पराजय त्रस्त होकर निराशा के गर्त में गिरी हुई थी, उनके लिए इन सिद्धों की वाणी ने संजीवनी का कार्य किया।
 
==सन्दर्भ==