"अप्सरा": अवतरणों में अंतर
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हिंदू कथाओं में '''अप्सरा''' देवलोक की नृत्यांगनायें हैं। इनमें से प्रमुख हैं [[उर्वशी]], [[रंभा|रम्भा]], [[मेनका]] आदि। [[यूनानी धर्म|यूनानी]] ग्रंथों में अप्सराओं को सामान्यत: 'निम्फ़' नाम दिय गया है। ये तरुण, सुंदर, अविवाहित, कमर तक वस्त्र से आच्छादित और हाथ में पानी से भरे हुआ पात्र लिए स्त्री के रूप में चित्रित की गई हैं। अप्सराएँ महर्षि [[कश्यप]] और मुनि की कन्याएं हैं
[[भारत]]वर्ष में अप्सरा और [[गन्धर्व|गंधर्व]] का सहचर्य नितांत घनिष्ठ है। अपनी व्युत्पति के अनुसार ही अप्सरा (''अप्सु सरत्ति गच्छतीति अप्सरा'') जल में रहनेवाली मानी जाती है। [[अथर्ववेद संहिता|अथर्व]] तथा [[यजुर्वेद]] के अनुसार ये पानी में रहती हैं इसलिए कहीं-कहीं मनुष्यों को छोड़कर नदियों और जल-तटों पर जाने के लिए उनसे कहा गया है। यह इनके बुरे प्रभाव की ओर संकेत है। [[शतपथ ब्राह्मण]] में (११/५/१/४) ये तालाबों में पक्षियों के रूप में तैरनेवाली चित्रित की गई हैं और पिछले साहित्य में ये निश्चित रूप से जंगली जलाशयों में, नदियों में, समुद्र के भीतर वरुण के महलों में भी रहनेवाली मानी गई हैं। जल के अतिरिक्त इनका संबंध वृक्षों से भी हैैं। अथर्ववेद (४। ३७। ४) के अनुसार ये [[अश्वत्थ]] तथा [[न्यग्रोध]] वृक्षों पर रहती हैं जहाँ ये [[झूला|झूले]] में झूला करती हैं और इनके मधुर वाद्यों ([[कर्करी]]) की मीठी ध्वनि सुनी जाती है। ये नाच-गान तथा खेलकूद में निरत होकर अपना मनोविनोद करती हैं। ऋग्वेद में उर्वशी प्रसिद्ध अप्सरा मानी गई है (१०/९५)।
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