"जैन धर्म में अहिंसा": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Ahinsa_Parmo_Dharm.jpg|अंगूठाकार|एक [[जैन मन्दिर|जैन मंदिर]] में एक चित्र जिस पर "''अहिंसा परमो धर्म''" (अहिंसा सर्वश्रेष्ठ धर्म हैं) लिखा हुआ हैं।]]
'''''[[जैन धर्म]] में अहिंसा''''' एक मूलभूत सिद्धांत हैं जो अपनी [[महाव्रत|नैतिकतनैतिकता]] और सिद्धांत की आधारशिला का गठन करता हैं। शब्द ''[[अहिंसा]]'' का अर्थ है हिंसा का अभाव, या अन्य जीवों को नुकसान पहुँचाने की इच्छा का अभाव। शाकाहार और जैनों की अन्य अहिंसक प्रथाएँ और अनुष्ठान अहिंसा के सिद्धांत से प्रवाहित होते हैं। अहिंसा की जैन अवधारणा अन्य दर्शन में पाई जानेवाली अहिंसा की अवधारणाओं से बहुत अलग हैं कि अवधारणा अहिंसा में पाया  है। आमतौर पर हिंसा को दूसरों को नुकसान पहुँचाने से जोड़ा जाता हैं। लेकिन [[जैन दर्शन]] के अनुसार, हिंसा का संदर्भ मुख्य रूप से स्वयं को आघात करने से हैं - अर्थात, वह व्यवहार जो आत्मा की अपनी क्षमता को ''[[मोक्ष (जैन धर्म)|मोक्ष]]''  (जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति) प्राप्त करने से रोकता हैं।<ref name="Jaini 1998 167">{{Harvnb|Jaini|1998|p=167}}</ref> साथ ही, इसका मतलब दूसरों के प्रति हिंसा भी हैं, क्योंकि इस दूसरों को नुकसान पहुंचाने की प्रवृत्ति से अंततः स्वयं की आत्मा को ही हानि पहुँचती हैं। इसके अलावा, अहिंसा की अवधारणा का विस्तार जैनों ने न केवल मनुष्यों तक, बल्कि सभी जानवरों, पौधों, सूक्ष्म जीवों और सभी प्राणी जिनमे जीवन या जीवन की संभावना हो, तक करते हैं। प्रत्येक जीवन पवित्र है और हर किसी के पास अपनी अधिकतम क्षमता तक अभयपूर्वक जीने का अधिकार हैं।  जीवित प्राणियों को उन लोगों से भय नहीं रहता जिन्होंने अहिंसा का व्रत लिया हो। जैन धर्म के अनुसार, जीवन की सुरक्षा, जिसे "अभयदानम्" के रूप में भी जाना जाता हैं, सर्वोच्च दान हैं जो कोई व्यक्ति कर सकता हैं।<ref name="Varni, Jinendra 1993">{{Harvnb|Varni|1993|p=335}} "Giving protection always to living beings who are in fear of death is known as abhayadana"</ref>
'''''[[जैन धर्म]] में अहिंसा''''' (अधर्मी के नाश के लिए किया गया कृत्य धर्महिंसा
हिंसा -दंड बिना दंड याने न्याय के जीवन और राज्य व्यवस्था नहीं चलती अन्यथा अपराध अधर्म अधर्मी बढ़ जायेंगे (अहिंसा अर्थात धर्महिंसा ))
 
[[महाव्रत|नैतिकत]] और सिद्धांत की आधारशिला का गठन करता हैं। शब्द ''[[अहिंसा]]'' का अर्थ है हिंसा का अभाव, या अन्य जीवों को नुकसान पहुँचाने की इच्छा का अभाव। शाकाहार और जैनों की अन्य अहिंसक प्रथाएँ और अनुष्ठान अहिंसा के सिद्धांत से प्रवाहित होते हैं। अहिंसा की जैन अवधारणा अन्य दर्शन में पाई जानेवाली अहिंसा की अवधारणाओं से बहुत अलग हैं कि अवधारणा अहिंसा में पाया  है। आमतौर पर हिंसा को दूसरों को नुकसान पहुँचाने से जोड़ा जाता हैं। लेकिन [[जैन दर्शन]] के अनुसार, हिंसा का संदर्भ मुख्य रूप से स्वयं को आघात करने से हैं - अर्थात, वह व्यवहार जो आत्मा की अपनी क्षमता को ''[[मोक्ष (जैन धर्म)|मोक्ष]]''  (जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति) प्राप्त करने से रोकता हैं।<ref name="Jaini 1998 167">{{Harvnb|Jaini|1998|p=167}}</ref> साथ ही, इसका मतलब दूसरों के प्रति हिंसा भी हैं, क्योंकि इस दूसरों को नुकसान पहुंचाने की प्रवृत्ति से अंततः स्वयं की आत्मा को ही हानि पहुँचती हैं। इसके अलावा, अहिंसा की अवधारणा का विस्तार जैनों ने न केवल मनुष्यों तक, बल्कि सभी जानवरों, पौधों, सूक्ष्म जीवों और सभी प्राणी जिनमे जीवन या जीवन की संभावना हो, तक करते हैं। प्रत्येक जीवन पवित्र है और हर किसी के पास अपनी अधिकतम क्षमता तक अभयपूर्वक जीने का अधिकार हैं।  जीवित प्राणियों को उन लोगों से भय नहीं रहता जिन्होंने अहिंसा का व्रत लिया हो। जैन धर्म के अनुसार, जीवन की सुरक्षा, जिसे "अभयदानम्" के रूप में भी जाना जाता हैं, सर्वोच्च दान हैं जो कोई व्यक्ति कर सकता हैं।<ref name="Varni, Jinendra 1993">{{Harvnb|Varni|1993|p=335}} "Giving protection always to living beings who are in fear of death is known as abhayadana"</ref>
 
== अवलोकन ==
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=== {{Anchor|Ways of committing Violence}}हिंसा करने के तरीके  ===
 
== अहिंसा का तर्क == अर्थात धर्म हिंसा
हिंसा अर्थात हत्या नहीं हैँ दंड देना हैँ
उदाहरण -अगर आप को मलेरिया के मच्छर काट ले तो आप उस बीमारी के विषाणुओ को अपने शरीर से नष्ट करने तथा स्वस्थ होने के लिये आपको मलेरिया के विषाणुओ को नष्ट करना पड़ेगा तो क्या ये हिंसा हुई कोई बता सकता हैँ नहीं ये अहिंसा हैँ कोई हिंसक जंतु आपपर आक्रमण करदे तो क्या आप क्या करेंगे लाठी या शस्त्र लेकर उस जंतु को मारेंगे नहीं और आत्मरक्षा (प्राणरक्षा) नहीं करेंगे या कहेँगे हे ईश्वर इस हिंसक जंतु को माफ कर दीजिये ये नहीं जनता की ये क्या कर रहा हैँ यही तो मूढ़ता जड़ता आत्मघात हुआ ये कायरता नपुंसकता हैँ और कायरता सबसे बड़ा अधर्म हैँ
याने अहिंसा अर्थात धर्मानुसार दंड देने को ही धर्महिंसा या अहिंसा कहा जाता हैँ हत्या करने वाले को फांसी की सजा दी जाय या देश द्रोही आतंकवादी आततायी को मारना फांसी देने
प्राणदंड कहलाता हैँ यह भी अहिंसा ही हैँ
इन्द्रियों के दमन कर आत्मसयंम के पालन करना अहिंसा हैँ
 
== अहिंसा और शाकाहार ==