"यास्क": अवतरणों में अंतर

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'''यास्क''' वैदिक संज्ञाओं के एक प्रसिद्ध [[व्युत्पत्तिशास्त्र|व्युत्पतिकार]] एवं [[वैयाकरण]] थे। इन्हें [[निरुक्त]]कार कहा गया है। निरुक्त को तीसरा [[वेदाङ्ग]] माना जाता है। यास्क ने पहले '[[निघण्टु]]' नामक वैदिक शब्दकोश को तैयार किया। निरुक्त उसी का विशेषण है। निघण्टु और निरुक्त की विषय समानता को देखते हुए [[सायणाचार्य]] ने अपने 'ऋग्वेद भाष्य' में निघण्टु को ही निरुक्त माना है। 'व्याकरण शास्त्र' में निरुक्त का बहुत महत्त्व है।<ref>[http://vasantbhatt.blogspot.com/2009/07/blog-post.html '''यास्क एवं पाणिनि''' : काल एवं विषयवस्तु]</ref>
 
==काल==
यास्क के काल को लेकर विद्वानों में मतभेद है। कुछ लोग उनका जीवनकाल [[पाणिनि]] के पूर्व मानते हैं जबकि कुछ लोग पाणिनि के पश्चात।
इनका समय महाभारत काल के पूर्व का था। शान्तिपर्व अध्याय ३४२ का सन्दर्भ इसमें प्रमाण है।
 
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==शाब्दिक वर्गीकरण व कथन के अंग==
यास्क ने शब्दों के चार वर्गों का वर्णन किया है:<ref>[[विमल कृष्ण मतिलाल]] (1990). [https://archive.org/details/wordworldindiasc0000mati The word and the world: India's contribution to the study of language]. Delhi; New York: Oxford University Press. ISBN 978-0-19-562515-8. LCCN 91174579. OCLC 25096200. Yaska is dealt with in Chapter 3.</ref>
 
1.(१) नाम = [[संज्ञा]] या मूल रूप।
 
2.(२) आख्यात = [[क्रिया]]
 
3.(३) उपसर्ग
 
4.(४) निपात
यास्क ने सत्व विद्या से सम्बंधित दो वर्गों को एक किया :
* क्रिया या कार्य (भाव:भावः) ,
* तत्त्व या जीव (सत्व:सत्वः)।
इसके बाद सर्वप्रथम इन्होंने क्रिया का वर्णन किया जिसमें भाव:भावः ( क्रिया) प्रबल होता है जबकि दूसरी ओर सत्व:सत्वः (वस्तु) प्रबल होता है।
 
==सन्दर्भ==
"https://hi.wikipedia.org/wiki/यास्क" से प्राप्त