"नारा": अवतरणों में अंतर

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नारे सामाजिक आंदोलनों के लिए बहुत प्रभावी हथियार हैं। इनमें असंख्य लोगों की भावनाओं को जाग्रत उत्तेजित और आदोलित करने की शक्ति होती है। जब लोग सैकड़ों हजारों या लाखों की संख्या में इकट्ठे होते हैं तो ये बहुत जोशीली भाषा में अपने भाव प्रकट करते हैं। वहाँ उपस्थित आम लोग, जिनका उस आंदोलन से कोई लेना-देना नहीं होता वे भी भावनाओं में बहकर उनके साथ नारे लगाने लगते हैं या उनकी भावनाओं का समर्थन करने लगते हैं। जो लोग समर्थक या आंदोलनकारी होते हैं, वे तो उन नारों को सुनकर आँधी और तूफान बन जाते हैं और कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं। यहाँ तक कि अपना जीवन भी अर्पित कर देते हैं।
 
भारत की आजादी में भी हमारे क्रांतिकारी वीरों के द्वारा दिए गए नारों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जब [[सुभाष चन्द्र बोस]] ने नारा दिया- "'''तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा"''' तो इस नारे को सुनकर हमारे देश के अनगिनत नर-नारियों ने अपनी धन-संपत्ति और जीवन तक कुर्बान कर दिया। [[महात्मा गाँधी]] ने नारा दिया- "'''करो या मरो।मरो'''"। इस नारे ने भारतवासियों को अपना सब कुछ बलिदान करने की प्रेरणा दी।
 
== कुलचिह्न में नारे ==