"भारत के राष्ट्रपति": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
No edit summary |
Saurmandal (वार्ता | योगदान) प्रारूपण, और लाल कड़ियाँ ठीक की |
||
पंक्ति 1:
{{सुरक्षित}}
{{Infobox official post
|post = राष्ट्रपति<br>President of India<br>
|body = भारत गणराज्य
|flagsize = 110px
|flagcaption = [[भारत का ध्वज|भारत का राष्ट्रीय ध्वज]]
पंक्ति 19:
|formation = [[भारत का संविधान]]<br>}[[२६|26]] जनवरी [[१९५०|1950]]
|inaugural = [[राजेन्द्र प्रसाद]]<br>[[२६|26]] जनवरी [[१९५०|1950]]
|salary = {{INRConvert|500000}} (प्रति माह)<ref name="salary hike for president">{{cite news|url=http://www.indianexpress.com/news/president-okays-her-own-salary-hike-by-300-p/406240/|title=President okays her own salary hike by 300 per cent|newspaper=
|website = [http://presidentofindia.nic.in/index.htm President of India]
}}
'''भारत के राष्ट्रपति''', [[भारत|भारत गणराज्य]] के कार्यपालक अध्यक्ष होते हैं। संघ के सभी कार्यपालक कार्य उनके नाम से किये जाते हैं। अनुच्छेद 53 के अनुसार संघ की कार्यपालक शक्ति उनमें निहित हैं। वह भारतीय सशस्त्र सेनाओं का सर्वोच्च सेनानायक भी हैं। सभी प्रकार के आपातकाल लगाने व हटाने वाला, युद्ध/शान्ति की घोषणा करने वाला होता है। वह देश के प्रथम नागरिक हैं। भारतीय राष्ट्रपति का भारतीय नागरिक होना आवश्यक है।
सिद्धान्ततः राष्ट्रपति के पास पर्याप्त शक्ति होती है। पर कुछ अपवादों के अलावा राष्ट्रपति के पद में निहित अधिकांश अधिकार वास्तव में [[भारत का प्रधानमन्त्री|प्रधानमन्त्री]] की अध्यक्षता वाले [[भारत का केन्द्रीय
भारत के राष्ट्रपति [[नई दिल्ली]] स्थित [[राष्ट्रपति भवन]] में रहते हैं, जिसे [[रायसीना की पहाड़ी|रायसीना हिल]] के नाम से भी जाना जाता है। राष्ट्रपति अधिकतम कितनी भी बार पद पर रह सकते हैं इसकी कोई सीमा तय नहीं है। अब तक केवल पहले राष्ट्रपति [[राजेन्द्र प्रसाद]] ने ही इस पद पर दो बार अपना कार्यकाल पूरा किया है।
[[प्रतिभा देवीसिंह पाटिल|प्रतिभा पाटिल]] भारत की [[
== इतिहास ==
Line 43 ⟶ 42:
राष्ट्रपति को [[भारतीय संसद|भारत के संसद]] के दोनो सदनों ([[लोक सभा]] और [[राज्य सभा]]) तथा साथ ही [[भारत के राज्य तथा केन्द्र-शासित प्रदेश|राज्य]] विधायिकाओं ([[विधान सभा|विधान सभाओं]]) के निर्वाचित सदस्यों द्वारा पाँच वर्ष की अवधि के लिए चुना जाता है। मत आवण्टित करने के लिए एक फार्मूला इस्तेमाल किया गया है ताकि हर राज्य की जनसंख्या और उस राज्य से विधानसभा के सदस्यों द्वारा मत डालने की संख्या के बीच एक अनुपात रहे और राज्य विधानसभाओं के सदस्यों और राष्ट्रीय सांसदों के बीच एक समानुपात बनी रहे। अगर किसी उम्मीदवार को बहुमत प्राप्त नहीं होती है तो एक स्थापित प्रणाली है जिससे हारने वाले उम्मीदवारों को प्रतियोगिता से हटा दिया जाता है और उनको मिले मत अन्य उम्मीदवारों को तबतक हस्तान्तरित होता है, जब तक किसी एक को बहुमत नहीं मिलता।
राष्ट्रपति बनने के लिए आवश्यक योग्यताएँ
भारत का कोई [[नागरिकता|नागरिक]] जिसकी उम्र 35 साल या अधिक हो वह पद का उम्मीदवार हो सकता है। राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार को [[लोक सभा|लोकसभा]] का सदस्य बनने की योग्यता होना चाहिए और [[भारत सरकार|सरकार]] के अधीन कोई लाभ का पद धारण किया हुआ नहीं होना चाहिए। परन्तु निम्नलिखित कुछ कार्यालय-धारकों को राष्ट्रपति के उम्मीदवार के रूप में खड़ा होने की अनुमति दी गई है:
Line 53 ⟶ 52:
राष्ट्रपति के निर्वाचन सम्बन्धी किसी भी विवाद में निणर्य लेने का अधिकार [[भारत का उच्चतम न्यायालय|उच्चतम न्यायालय]] को है।
== राष्ट्रपति पर महाभियोग ==
अनुच्छेद 61 राष्ट्रपति के महाभियोग से संबंधित है। भारतीय संविधान के अंतर्गत राष्ट्रपति मात्र महाभियोजित होता है, अन्य सभी पदाधिकारी पद से हटाये जाते हैं। महाभियोजन एक विधायिका सम्बन्धित कार्यवाही है जबकि पद से हटाना एक कार्यपालिका सम्बन्धित कार्यवाही है। महाभियोजन एक कड़ाई से पालित किया जाने वाला औपचारिक कृत्य है जो संविधान का उल्लघंन करने पर ही होता है। यह उल्लघंन एक राजानैतिक कृत्य है जिसका निर्धारण संसद करती है। वह तभी पद से हटेगा जब उसे संसद में प्रस्तुत किसी ऐसे प्रस्ताव से हटाया जाये जिसे प्रस्तुत करते समय सदन के १/४ सदस्यों का समर्थन मिले। प्रस्ताव पारित करने से पूर्व उसको 14 दिन पहले नोटिस दिया जायेगा। प्रस्ताव सदन की कुल संख्या के 2/3 से अधिक बहुमत से पारित होना चाहिये। फिर दूसरे सदन में जाने पर इस प्रस्ताव की जाँच एक समिति के द्वारा होगी। इस समय राष्ट्रपति अपना पक्ष स्वंय अथवा वकील के माध्यम से रख सकता है। दूसरा सदन भी उसे उसी 2/3 बहुमत से पारित करेगा। दूसरे सदन द्वारा प्रस्ताव पारित करने के दिन से राष्ट्रपति पद से हट जायेगा।
==
संविधान का 72वाँ अनुच्छेद राष्ट्रपति को न्यायिक शक्तियाँ देता है कि वह दंड का उन्मूलन, क्षमा, आहरण, परिहरण, परिवर्तन कर सकता है।
Line 70 ⟶ 68:
शेरसिंह बनाम पंजाब राज्य 1983 में सुप्रीमकोर्ट ने निर्णय दिया की अनु 72, अनु 161 के अंतर्गत दी गई दया याचिका जितनी शीघ्रता से हो सके उतनी जल्दी निपटा दी जाये। राष्ट्रपति न्यायिक कार्यवाही तथा न्यायिक निर्णय को नहीं बदलेगा वह केवल न्यायिक निर्णय से राहत देगा याचिकाकर्ता को यह भी अधिकार नहीं होगा कि वह सुनवाई के लिये राष्ट्रपति के समक्ष उपस्थित हो
== वीटो शक्तियाँ ==
विधायिका की किसी कार्यवाही को विधि बनने से रोकने की शक्ति वीटो शक्ति कहलाती है संविधान राष्ट्रपति को तीन प्रकार के वीटो देता है।
▲* (२) '''निलम्बनकारी वीटो''' – संविधान संशोधन अथवा धन बिल के अतिरिक्त राष्ट्रपति को भेजा गया कोई भी बिल वह संसद को पुर्नविचार हेतु वापिस भेज सकता है किंतु संसद यदि इस बिल को पुनः पास कर के भेज दे तो उसके पास सिवाय इसके कोई विकल्प नहीं है कि उस बिल को स्वीकृति दे दे। इस वीटो को वह अपने विवेकाधिकार से प्रयोग लेगा। इस वीटो का प्रयोग अभी तक संसद सदस्यों के वेतन बिल भत्ते तथा पेंशन नियम संशोधन 1991 में किया गया था। यह एक वित्तीय बिल था। राष्ट्रपति [[रामस्वामी वेंकटरमण]] ने इस वीटो का प्रयोग इस आधार पर किया कि यह बिल लोकसभा में बिना उनकी अनुमति के लाया गया था।
▲* (३) '''पॉकेट वीटो''' – संविधान राष्ट्रपति को स्वीकृति अस्वीकृति देने के लिये कोई समय सीमा नहीं देता है यदि राष्ट्रपति किसी बिल पर कोई निर्णय ना दे (सामान्य बिल, न कि धन या संविधान संशोधन) तो माना जायेगा कि उस ने अपने पॉकेट वीटो का प्रयोग किया है यह भी उसकी विवेकाधिकार शक्ति के अन्दर आता है। पेप्सू बिल 1956 तथा भारतीय डाक बिल 1984 में तत्कालीन राष्ट्रपति [[ज़ैल सिंह|ज्ञानी जैल सिंह]] ने इस वीटो का प्रयोग किया था।
=== राष्ट्रपति की संसदीय शक्ति ===
राष्ट्रपति संसद का अंग है। कोई भी बिल बिना उसकी स्वीकृति के पास नहीं हो सकता अथवा सदन में ही नहीं लाया जा सकता है।
== राष्ट्रपति की विवेकाधीन शक्तियाँ ==
▲*2. अनु 78 के अनुसार प्रधान मंत्री राष्ट्रपति को समय समय पर मिल कर राज्य के मामलों तथा भावी विधेयकों के बारे में सूचना देगा, इस तरह अनु 78 के अनुसार राष्ट्रपति सूचना प्राप्ति का अधिकार रखता है यह अनु प्रधान मंत्री पर एक संवैधानिक उत्तरदायित्व रखता है यह अधिकार राष्ट्रपति कभी भी प्रयोग ला सकता है इसके माध्यम से वह मंत्री परिषद को विधेयकों निर्णयों के परिणामों की चेतावनी दे सकता है
▲*3. जब कोई राजनैतिक दल लोकसभा में बहुमत नहीं पा सके तब वह अपने विवेकानुसार प्रधानमंत्री की नियुक्ति करेगा
▲*4. निलंबन वीटो/पॉकेट वीटो भी विवेकी शक्ति है
▲*5. संसद के सदनो को बैठक हेतु बुलाना
▲*6. अनु 75 (3) मंत्री परिषद के सम्मिलित उत्तरदायित्व का प्रतिपादन करता है राष्ट्रपति मंत्री परिषद को किसी निर्णय पर जो कि एक मंत्री ने व्यक्तिगत रूप से लिया था पर सम्मिलित रूप से विचार करने को कह सकता है।
▲*7. लोकसभा का विघटन यदि मंत्रीपरिषद को बहुमत प्राप्त नहीं है
== संविधान के अन्तर्गत राष्ट्रपति की स्थिति ==
Line 101 ⟶ 91:
== सन्दर्भ ==
{{टिप्पणीसूची}}
== इन्हें
* [[भारत के राष्ट्रपतियों की सूची]]
* [[भारतीय राष्ट्रपति चुनाव, २०१७]]
== बाहरी कड़ियाँ ==
|