"लोहार": अवतरणों में अंतर

No edit summary
टैग: Reverted
टैग: Reverted
पंक्ति 24:
*[[सोनार]]
*[[बढ़ई]]
(अथर्ववेद कांड -9, सूक्त- 3, मंत्र-19) अर्थात – ब्रह्मशिल्प विद्या को जानने वाले ब्राह्मणों ने शाला का निर्माण किया और सह विद्वानों ने इस निर्माण के नापतोल में सहायता की हैं। सोमरस पीने के स्थान पर बैठे हुए इंद्रदेव और अग्नि देव इस शाला की रक्षा करें। सभी को यह स्मरण रहे कि अथर्ववेद का उपवेद अर्थवेद अर्थात शिल्प वेद है उपर्युक्त मंत्र अथर्ववेद का है जिसमें अथर्व वेद को जानने वाले ब्रह्मशिल्पी ब्राह्मणों ने शाला का निर्माण किया , अथर्ववेद के अनुसार अंगिरस ब्राह्मण अर्थात अथर्ववेदी परमात्मा के नेत्र समान है अथर्ववेद के ज्ञाता को यज्ञ में सर्वोच्च पद ब्रह्मा का प्राप्त है ब्रह्मशिल्पी विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मण कुल के ब्राह्मण अथर्ववेद का उपवेद शिल्पवेद होने के कारण अथर्ववेदीय विश्वकर्मा ब्राह्मण भी कहलाते हैं वेदों अथर्ववेदी ब्राह्मणों की महिमा का अभूतपूर्व वर्णन है अथर्ववेद में विश्वकर्मा शिल्पी ब्राह्मणों को यज्ञवेदियों (यज्ञकुण्डों) का निर्माण करके यज्ञ का विस्तार करने वाला अर्थात यज्ञकर्ता कहा गया है |
 
यस्यां वेदिं परिगृहणन्ति भूम्यां यस्यां यज्ञं तन्वते विश्वकर्माण:। यस्यां मीयन्ते स्वरव: पृथिव्यामूर्ध्वा: शुक्रा आहुत्या: पुरस्तात् ॥
 
==सन्दर्भ ==
{{टिप्पणी सूची}}
"https://hi.wikipedia.org/wiki/लोहार" से प्राप्त