"कथानक": अवतरणों में अंतर
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कथांतर्गत "कार्यव्यापार की योजना" को '''कथानक''' (Plot) कहते हैं। "कथानक" और "कथा" दोनों ही शब्द [[संस्कृत भाषा|संस्कृत]] "कथ" धातु से उत्पन्न हैं। संस्कृत साहित्यशास्त्र में "[[कथा]]' शब्द का प्रयोग एक निश्चित काव्यरूप के अर्थ में किया जाता रहा है किंतु कथा शब्द का सामान्य अर्थ है-"वह जो कहा जाए'। यहाँ कहनेवाले के साथ-साथ सुननेवाले की उपस्थिति भी अंतर्भुक्त है कयोंकि "कहना' शब्द तभी सार्थक होता है जब उसे सुननेवाला भी कोई हो। श्रोता के अभाव में केवल "बोलने' या "बड़बड़ाने' की कल्पना की जा सकती है, "कहने' की नहीं। इसके साथ ही, वह सभी कुछ "जो कहा जाए' कथा की परिसीमाओं में नहीं सिमट पाता। अत: कथा का तात्पर्य किसी ऐसी "कथित घटना' के कहने या वर्णन करने से होता है जिसका एक निश्चित क्रम एवं परिणाम हो। ई.एम. फ़ार्स्टर (ऐस्पेक्ट्स ऑव द नावेल, लंदन, १९४९, पृ. २९) ने "घटनाओं के कालानुक्रमिक वर्णन' को कथा (स्टोरी) की संज्ञा दी है; जैसे, नाश्ते के बाद मध्याह्न का भोजन, सोमवार के बाद मंगलवार, यौवन के बाद वृद्धावस्था आदि।
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