"कलचुरि राजवंश": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Asia 1200ad.jpg|right|thumb|300px|1200 ई में एशिया के राज्य ; इसमें 'यादव' राज्य एवं उसके पड़ोसी राज्य देख सकते हैं।]]
'''कलचुरि''' प्राचीन भारत का विख्यात [[आभीर|त्रिकुटा आभीर]] राजवंश था।<ref>{{cite book|title=Madhya Pradesh: Dewas |url=https://books.google.com/books?id=aChuAAAAMAAJ |year=1993 |publisher=Government Central Press, 1993 |page=30}}</ref><ref>{{cite book|first=Jitāmitra Prasāda |last=Siṃhadeba |title=Archaeology of Orissa: With Special Reference to Nuapada and Kalahandi |url=https://books.google.com/books?id=2ypuAAAAMAAJ |year=2006 |publisher=R.N. Bhattacharya, 2006 |isbn=9788187661504 |page=113}}</ref><ref>{{cite web|url=http://books.google.com/books?id=axpuAAAAMAAJ&q=trikuta+abhira&dq=trikuta+abhira&lr=&ei=i7BdS-iAPYGKkASAlvS4Bw&cd=20|title=Tripurī, history and culture|work=google.com|access-date=5 नवंबर 2019|archive-url=https://web.archive.org/web/20160707135421/https://books.google.com/books?id=axpuAAAAMAAJ&q=trikuta+abhira&dq=trikuta+abhira&lr=&ei=i7BdS-iAPYGKkASAlvS4Bw&cd=20|archive-date=7 जुलाई 2016|url-status=live}}</ref> इस वंश की शुरुआत आभीर राजा ईश्वरसेन ने की थी।<ref name=chattopadhyaya>{{cite book |title=Some Early dynasties of South India |last=Chattopadhyaya |first=Sudhakar |year= |publisher=Motilal Banarsidass |isbn=81-208-2941-7 |url=https://books.google.com/books?id=78I5lDHU2jQC&pg=PA100&dq=%22Kalacuri+Era%22+-wikipedia&num=100&as_brr=3&ie=ISO-8859-1&sig=PU0xJd1jXCPtq7ZYtsNocsj_C6E |page=100 |access-date=19 अप्रैल 2020 |archive-url=https://web.archive.org/web/20170318093903/https://books.google.com/books?id=78I5lDHU2jQC&pg=PA100&dq=%22Kalacuri+Era%22+-wikipedia&num=100&as_brr=3&ie=ISO-8859-1&sig=PU0xJd1jXCPtq7ZYtsNocsj_C6E |archive-date=18 मार्च 2017 |url-status=live }}</ref>'कलचुरी ' नाम से [[भारत]] में दो राजवंश थे- एक मध्य एवं पश्चिमी भारत ([[मध्य प्रदेश]] तथा [[राजस्थान]]) में जिसे 'चेदी' 'हैहय' या 'उत्तरी कलचुरि' कहते हैं तथा दूसरा 'दक्षिणी कलचुरी' जिसने वर्तमान [[कर्नाटक]] के क्षेत्रों पर राज्य किया।
 
'''चेदी''' प्राचीन भारत के 16 [[महाजनपद|महाजनपदों]] में से एक था। इसका शासन क्षेत्र मध्य तथा पश्चिमी भारत था। आधुनिक [[बुंदेलखंड]] तथा उसके समीपवर्ती भूभाग तथा मेरठ इसके आधीन थे। शक्तिमती या संथिवती इसकी राजधानी थी।<ref>{{cite book |last=नाहर |first= डॉ रतिभानु सिंह|title= प्राचीन भारत का राजनैतिक एवं सांस्कृतिक इतिहास |year= 1974 |publisher= किताबमहल|location= इलाहाबाद, भारत|id= |page= 112|editor: |access-date= 19 मार्च 2008}}</ref>
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== परिचय ==
[[चित्र:Kalachurya emblem.jpg|right|thumb|200px|कलचुरि राजवंश का राजचिह्न]]
इस वंश का प्रथम ज्ञात शासक '''कोक्ल्ल प्रथम''' था जो 845 ई. के लगभग सिंहासन पर बैठा। उसने वैवाहिक संबंधों के द्वारा अपनी शक्ति दृढ़ की। उसका विवाह नट्टा नाम की एक [[चंदेल]] राजकुमारी से हुआ था और उसने अपनी पुत्री का विवाह [[राष्ट्रकूट]] नरेश [[कृष्ण द्वितीय]] के साथ किया था। इस युग की अव्यवस्थित राजनीतिक स्थित में उसने अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए कई युद्ध किए। उसने [[गुर्जर-प्रतिहार राजवंश|प्रतिहार]] नरेश भोज प्रथम और उसके सांमत कलचुरि शंकरगण, गुहिल हर्षराज और चाहपान गूवक द्वितीय को पराजत किया। कोक्कल्ल के लिए कहा गया है कि उसने इन शासकों के कोष का हरण किया और उन्हें संभवत: फिर आक्रमण न करने के आश्वासन के रूप में भय से मुक्ति दी। इन्हीं युद्धों के संबंध में उसने राजस्थान में तुरुष्कां को पराजित किया जो संभवत: सिंध के अरब प्रांतपाल के सैनिक थे। उसने वंग पर भी इसी प्रकार का आक्रमण किया था। अपने शासनकाल के उत्तरार्द्ध में उसने राष्ट्रकूट नरेश कृष्ण द्वितीय को पराजित करके उत्तरी कोंकण पर आक्रमण किया था किंतु अंत में उसने राष्ट्रकूटों के साथ संधि कर ली थी। इन युद्धों से कलचुरि राज्य की सीमाओं में कोई वृद्धि नहीं हुई। कोक्कल्ल के 18 पुत्र थे जिनमें से 17 की उसने पृथक पृथक मंडलों का शसक नियुक्त किया; ज्येष्ठ पुत्र शंकरगण उसके बाद सिंहासन पर बैठा। इन 17 पुत्रों में से एक ने दक्षिण कोशल में कलचुरि राजवंश की एक नई शाखा की स्थापना की जिसकी राजधानी पहले तुम्माण और बाद में तृतीय नरेश रत्नराजनत्नराज द्वारा स्थापित रत्नपुर थी। इस शाखा में नौ शासक हुए जिन्होंने 12वीं शताब्दी के अंत तक राज्य किया।
 
शंकरगण ने कोशल के सोमवंशी नरेश से पालि छीन लिया1 पूर्वी चालुक्य विजयादित्य तृतीय के आक्रमण के विरुद्ध वह राष्ट्रकूट कृष्ण द्वितीय की सहायता के लिए गया किंतु उसके पक्ष की पूर्ण पराजय हुई। उसने अपनी पुत्री लक्ष्मी का विवाह कृष्ण द्वितीय के पुत्र जगत्तुंग के साथ किया था जिनका पुत्र इंद्र तृतीय था। इंद्र तृतीय का विवाह शंकरगण के छोटे भाई अर्जुन की पौत्री से हुआ था।
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लक्ष्मणराज के दोनों पुत्रों शंकरगण और युवराज द्वितीय में सैनिक उत्साह का अभाव था। युवराज द्वितीय के समय तैज द्वितीय ने भी चेदि देश पर आक्रमण किए। मुंज परमार ने तो कुछ समय के लिए त्रिपुरी पर ही अधिकार कर लिया था। युवराज की कायरता के कारण राज्य के प्रमुख मंत्रियों ने उसके पुत्र कोक्कल्ल द्वितीय को सिंहासन पर बैठाया। कोक्कल्ल के समय में कलचुरि लोगों को अपनी लुप्त प्रतिष्ठा फिर से प्राप्त हुई। उसने गुर्जर देश के शासक को पराजित किया। उसे कुंतल के नरेश (चालुक्य सत्याश्रय) पर भी विजय प्राप्त हुई। उसने गौड़ पर भी आक्रमण किया था।
 
कोक्कल्ल के पुत्र (कमलराज) विक्रमादित्य उपाधिधारी [[गांगेयदेव]] के समय में चेदि लोगों ने उत्तरी भारत पर अपनी सार्वभौम सत्ता स्थापित करने की ओर चरण बढ़ाए। उसका राज्यकाल 1019 ई. के कुछ वर्ष पूर्व से 1041 ई. तक था। भोज परमार और राजेंद्र चोल के साथ जो उसने चालुक्य राज्य पर आक्रमण किया उसमें वह असफल रहा। उसने कोसल पर आक्रमण किया और उत्कल को जीतता हुआ वह समुद्र तट तक पहुँच गया। संभवत: इसी विजय के उपलक्ष में उसने त्रिकलिंगाधिपति का विरुद धारण किया। भोज परमार और [[विजयपाल चंदेल]] के कारण उसकी साम्राज्य-प्रसार की नीति अवरुद्ध हो गई। उत्तर-पूर्व की ओर उसने बनारस पर अधिकार कर लिया और अंग तक सफल आक्रमण किया किंतु मगध अथवा तीरभुक्ति (तिरहुत) हो वह अपने राज्य में नहीं मिला पाया। 1034 ई. में पंजाब के सूबेदार अहमद नियाल्तिगीन ने बनारस पर आक्रमण कर उसे लूटा। [[गांगेयदेव]] ने भी कीर (काँगड़ा) पर, जो मुसलमानों के अधिकार में था, आक्रमण किया था।
 
गांगेयदेव का पुत्र [[कर्णचेदि|लक्ष्मीकर्ण अथवा कर्ण]] कलचुरि वंश का सबसे शक्तिशाली शासक था और उसकी गणना प्राचीन भारतीय इतिहास के महान्‌ विजेताओं में होती है। उसने प्रयाग पर अपना अधिकार कर लिया और विजय करता हुआ वह कीर देश तक पहुँचा था। उसने पाल राज्य पर दो बार आक्रमण किया किंतु अंत में उसने उनसे संधि की और विग्रह पाल तृतीय के साथ अपनी पुत्री यौवनश्री का विवाह किया। राढा के ऊपर भी कुछ समय तक उसका अधिकार रहा। उसने वंग को भी जीता किंतु अंत में उसने वंग के शासक जातवर्मन्‌ के साथ संधि स्थापित की और उसके साथ अपनी पुत्री वीरश्री का विवाह कर दिया। उसने ओड्र और कलिंग पर भी विजय प्राप्त की। उसने कांची पर भी आक्रमण किया था और पल्लव, कुंग, मुरल और पांड्य लोगों को पराजित किया था। कुंतल का नरेश जो उसके हाथों पराजित हुआ, स्पष्ट ही सोमेश्वर प्रथम चालुक्य था। 1051 ई. के बाद उसने कीर्तिवर्मन्‌ चंदेल को पराजित किया किंतु बुंदेलखंड पर उसका अधिकार अधिक समय तक नहीं बना रह सका। उसने मालव के उत्तर-पश्चिम में स्थिति हूणमंडल पर भी आक्रमण किया था। भीम प्रथम चालुक्य के साथ साथ उसने भोज परमार के राज्य की विजय की किंतु चालुक्यों के हस्तक्षेप के कारण उसे विजित प्रदेश का अधिकार छोड़ना पड़ा। बाद में भीम ने कलह उत्पन्न होने पर डाहल पर आक्रमण कर कर्ण को पराजित किया था।